यह विचार आते कहाँ से हैं. शरीर से, वातावरण से, डर से, प्रेम से, इन्द्रियों से, व्यक्तियों से, व्यक्तित्व से, आत्मा से या फिर परमात्मा से. लेकिन जहाँ से भी आते हैं, यह बीज की तरह मन की धरातल पल पनपने के लिए क्यूं तत्पर होते हैं. कुछ विचार ऐसे हावी हो जातें हैं जैसे उनका कोई अंत नहीं. कुछ कब आते हैं ओर कब चले जाते हैं, उनकी कोई खबर नहीं. कुछ विचार ऐसे कोड़े बरसते हैं की मन के साथ साथ शरीर भी छलनी छलनी हो जाता है. कुछ विचार बर्फ के गोले होतें हैं ओर शरीर को सुन्न कर देते हैं. कुछ विचार कल कल करते झरने की तरेह फुदकते रहतें हैं. कुछ ऐसे मिलतें हैं जैसे सदियों बाद पाठशाला के मित्र मिलें हों. कुछ ऐसी चट्टान होतें हैं की छाती भारी कर जातें हैं. छाती फिर ऐसे विचारों की उत्पत्ति करती है की मन भारी हो जाता है. फिर एक दूजे के बोझ तले दब कर खुद की पहचान को नष्ट कर देते हैं. आत्मीयता को ध्वंश कर देते हैं. इन विचारों को जन्म कोई भी देता हो, कहीं से भी पनपते हों, इनका पालन पोषण तो तुम ही करते हो. तुम इन्हें अपनाते हों, परिपक्व करते हो, फिर कहते हो की मन चंचल है. य
"Sofar" captures the distance traveled so far from now.