अक्सर देखा गया है कि जो हमारे पास है हम वही देते हैं। जैसे हमारे पास सुख है तो वही बाँट सकते हैं, दुःख है तो वही बाँट सकते हैं। लेकिन जब हम देते हैं तो बिना मतलब का परेशान होते हैं की, अरे!! मैं कैसे ग़ुस्सा हो गया, मैं कैसे चिल्लाया? मेरे अंदर इतना ग़ुस्सा कहाँ से आया? सब नाटक है। खुद ग़ुस्से की बोरियाँ भर के ढो रहे हो और पता भी नहीं हैं।खुद को दूध का धुला मान कर ऐसे अनजान बनते हैं जैसे कुछ हवा ही नहीं। नकारने से असली चेहरा छुपता नहीं, उसका नुक़सान खुद को और अपने परिवार जनो को ही होता है। उस नुक़सान से बचने के लिए और खुद के जीवन को आनंद से भरने के लिए न्योता देता हूँ। सुदर्शन क्रिया और सहज समाधि ध्यान सीखो और ख़ुशहाली से हल्के चलते रहो ...
अक्सर देखा गया है कि जो हमारे पास है हम वही देते हैं। जैसे हमारे पास सुख है तो वही बाँट सकते हैं, दुःख है तो वही बाँट सकते हैं। लेकिन जब हम देते हैं तो बिना मतलब का परेशान होते हैं की, अरे!! मैं कैसे ग़ुस्सा हो गया, मैं कैसे चिल्लाया? मेरे अंदर इतना ग़ुस्सा कहाँ से आया? सब नाटक है। खुद ग़ुस्से की बोरियाँ भर के ढो रहे हो और पता भी नहीं हैं।खुद को दूध का धुला मान कर ऐसे अनजान बनते हैं जैसे कुछ हवा ही नहीं। नकारने से असली चेहरा छुपता नहीं, उसका नुक़सान खुद को और अपने परिवार जनो को ही होता है। उस नुक़सान से बचने के लिए और खुद के जीवन को आनंद से भरने के लिए न्योता देता हूँ। सुदर्शन क्रिया और सहज समाधि ध्यान सीखो और ख़ुशहाली से हल्के चलते रहो ...
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