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Showing posts from May, 2015

Breaking the habits of mind - becoming free of sins

Mind loves games and deception. It gets trained to like sadness and becomes master in duping you to believe that sadistic is its nature. As you attempt to deviate from the set pattern it hits back with more vengeance. मन दुःख की आदत डाल लेता है।  आपको ऐसा लगने लगता है की यही आपका स्वाभाव है।  और जब आप इससे दूर होने की कोशिश करते हो तो मन अपने बल से इसे दबोच लेता है। जब आप छोटे थे तो अपने स्वभाव मैं थे।  खुश थे।  खुशद थे।  लेकिन फिर बीमार पड़े, कस्ट हुआ , लोग आये , वह भी आये जिसने कभी ध्यान नहीं दिया और आपके मन ने धारणा  बैठा ली "अगर मैं दुखी रहता हूँ तो सब मुझे पूछते हैं ". ओर फिर शुरू होती है ज़िन्दगी भर की लड़ाई।  अहंकार और दुखी मन की मिली भगत मैं आप कभी डूबते हो तो कभी उठते हो।   यह पाप सिर्फ मेल की एक परत है।  इसको ज्ञान की गंगा मैं डुबकी लगा कर धो डालो।  फिर आप आपने असली स्वभाव मैं डुबकी लगाओगे। जिसमें सिर्फ आनंद है शांति है बेहतर यही होगा की आप जल्द से जल्द जीवन जीने की कला सीख लें और इस जीवन मैं मस्त हो जायें। When you...

In search of shiv tatva - शिव तत्त्व की प्रतीक्षा मैं

Where is shiv ? It is said that the entire universe is materialisation of one shiv sankalp (thought). But what happened to the creator after the world was created on his behest. Did he disappear? Did he hide? Is he dormant? शिव कहाँ हैं? कैसे हैं ? कौन हैं? कहते हैं यह सृस्टि एक शिव संकल्प का परिणाम है. लेकिन फिर वह कहाँ चले गए या फिर यहीं कहीं हैं, छुपे बैठे हैं। It is said that it is in everything but its not everything.  it can be found only via Guru (an enlightened master). You dont have direct access to shiva principle. only grace can bring it forth to you, no effort or manipulation can influence its decision to reveal it can come in  a form which is dear to you शिव तत्त्व के बारे मैं कुछ मान्यताएं हैं , जैसी की  सब उसमें है पर वह सब मैं नहीं हैं  वह सिर्फ गुरु की सानिध्य मैं मिलते हैं।   सिर्फ कृपा से जागृत होते हैं , अकारण , अकरम से  अक्सर तुम्हारे पूजनीय रूप मैं प्रकट भी हो सकते हैं  So what do you do in the meantime...