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Showing posts from June, 2010

लयम वृज - live ashtavakra geeta by Sri Sri RaviShankar ji

भाव में मस्त रहो लेकिन बिना होश खोये. अष्टवक्र कहते हैं "लयम वृज", लय में रहो. दिल की सुनो. भाव की तरफ भी ध्यान दो. जिस प्रकार संगीत में पकड़ होती है की वह अपनी धुन में हमें भुला देता हैं, हम डूब जाते हैं उसी तरेह ज़िन्दगी में चलते रहो, बड़ते रहो, जो मकसद चुने हैं पूरा करते रहो लेकिन चलते चलते यह न भूल जाओ की तुम किसी एक घटना या दृश्य से चिपके हुए हो. जैसे शीशे में हम अपनी तस्वीर देखतें हैं, सचते सवार्नते हैं,  अगर कहीं हम उसी तस्वीर से चिपक जायें ओर उसे ही एक मात्र सत्य मान लें तो फिर हमारा विकास नहीं होगा ओर हम अटक जाएँगे ज़िन्दगी में. शीशा कभी किसी के दृश्य को अपने में चिपका कर नहीं रखता है, जो भी आता है उसे वही दिखता है ओर आगे बड़ते रहता है. उस शीशे की तरेह बनो. सजो , मस्ती करो, सवारों लेकिन उन दृश्य में न खो जाओ. तुम दृष्टा हो. लेकिन जब वह दृश्य घटित हो तो उसमें पूरी तरेह डूब जाओ, जैसे इसका कोई अंत न हो. उस दृश्य में जो मस्ती है वह सारी अपना लो. ओर चलते रहो. लय में रहो. यह घटनायें समुद्र की लहरों की तरेह होतीं हैं, उन में उछल, खुद, मस्ती होती है ओर फिर वह उस गहरे

ईस्वर अनुभव क्या है- live ashtavakra geeta by Sri Sri Ravishankar ji

गुरु  ओर शिष्य में क्या अंतर है? गुरु पूर्ण है ओर शिष्य खाली है.  ईस्वर का अनुभव कैसे हो? ईस्वर किसी सवाल का उत्तर नहीं है. आप यह नहीं कह सकते कि यह है या वह है. वह आपके प्रश्नओं का समाधान है. वह विराम है. उसका अनुभव ठहराव में होता है. आप भागते रहोगे तो उससे दूर ही रहोगे. आप थम जाओगे तो वह अनुभव हो जाएगा.  उसका स्वाभाव है प्रेम ओर शांति. उस स्वाभाव तक पहुंचे के आपको ध्यान में शांत होना होगा. प्रेम में विलीन होना होगा. संपूर्ण समर्पण कि स्तिथि में  आप उसके स्वाभाव के करीब होगे. उस मौन में उसका अनुभव समाया है.  यह शांति आपको किताबी ज्ञान या श्रवण मात्र से नहीं मिलती है. इसके लिए आपको गुरु के सनिध्ये में होना होगा, उनकी शांति में अपने स्वरुप का अनुभव करना होगा. इससे आसन तरीका कोई नहीं. ऐसे समर्थ गुरु बड़ी मुश्किल से मिलते हैं, अति दुर्लभ होते हैं, ओर कई जन्मों के प्रयास के बाद उनका संग मिलता है.  आपने किताब में पड़ा  के तैरना कैसे सीखे. आपने कुछ चित्र देखे. आप सीख कर किसी को सुना भी दिया. लेकिन अभी तक आपने पानी में डूप्की लगाने कि हिम्मत नहीं जुटाई. न आपको उस किताब कि तकनीक पर

ब्रह्मचर्ये एक घटना है - live ashtavakra by Sri Sri Ravishankarji

आत्म ज्ञान पाने कि कोई शर्त नहीं होती,  यह बेशर्त ही तुम पा सकते हो. तुम वर्तमान समय मैं निर्दोष हो. तुम इस वक़्त अपने कर्मों के फल से भी मुक्त हो. लेकिन अगर तुम कहते रहोगे कि नहीं मैं गुस्सेल हूँ, नालायक हूँ, बद्तमीच हूँ, दीन हूँ, निर्दयी हूँ, पापी हूँ, तब तुम वही रहोगे. तुम्हारे मन को तुम्हारी दीनता सुन्दर लगती है, लेकिन तुम्हे इससे ख्ब्राहत होती है, डर लगता है, क्यूंकि यह सुन्दरता अब मलिन हो गयी है.  ध्यान के बाद बाद तुम्हे गुस्सा तो आता है लेकिन वह आ कर चला भी जाता है. उसमें ठहराव   नहीं है. और ध्यान करोगे तो शायद एक दिन ऐसा भी आएगा कि गुस्सा तुम्हारे आस पास भी नहीं आएगा. कुछ लोग आत्म ज्ञान पाने के बाद भी काम वासना से बच नहीं पाते, यह कितने आश्चर्ये कि बात है.  कितने जन्मों से हम अपने अंगों से आसक्ति बनाये हुए हैं. कुछ लोग तो बुडापे में भी जनेंद्रियोँ के अधीन होतें हैं. वो मन से गरम और तन से ठन्डे होतें हैं. हमें ध्यान मन से ठंडा और तन से गरम बनता है.  हमारे पैदा होने के साथ ही हमें माँ के स्तन में आकर्षण होता है, क्यूंकि हमें वहां से दूध मिलता है. तमिलनाडु मैं एक देवी हैं ज

तुम दीन नहीं हो - live ashtavakra commentary by Sri Sri Ravishankar ji

तुम वही हो. तुम सूर्य कि किरण नहीं, तुम उस किरण का विस्तार हो. तुम सूर्य हो.  जिस प्रकार सूर्ये अपनी किरणों को हर खिड़की के माध्यम से हर घर मैं भेजता है, उसी प्रकार परमात्मा अपनी पूर्णता को छोटी छोटी आत्मायों मैं भेजता है.  यह बात दूसरी है कि जब आत्मा अपने पुर मैं वास करने लगती है, अपने शरीर रुपी घर मैं रहने  लगती है तो भूल जाती है कि वह सिमित नहीं है, उसका विस्तार ही परमात्मा है.  लेकिन घर मैं घुसने के बाद आप कांच के टुकड़े मैं सूर्य का प्रतिबिम्ब देखते हो ओर अपने आप को सिर्फ एक किरण मात्र समझने लगते हो. जरा बाहर झाँक कर भी देखो, सूर्य का अनुभव तो करो. तुम्हारे आस पास भी वही सूर्य का अंश है. तुम्हारे पड़ोस मैं भी वही सूर्य कि किरण है, तुम्हारे गाँव मैं जो रिश्तेदार हैं वहां भी वही सूर्ये है. सूर्य कोई भेद भाव नहीं करता. तुम क्यूं ऊँच- नींच मैं पड़े हो.  तुम्हारे दुःख का कारण  क्या है. तुम गुरु से तो मिले हो. तुमने गुरु को साक्षात् किया है. लेकिन तुम संपूर्णतः यह निश्चय नहीं कर पाए हो कि येही सत्य है. पूरे भरोसे कि कमी होने से ही दुःख होता है.     यह संकल्प किस के पूरे होते हैं

सोहम का महत्व - live ashtavakra by Sri Sri RaviShankarji

मैं वही हूँ. न मैं त्रितिये व्यक्ति मैं हूँ, न द्वितीये व्यक्ति मैं हूँ. मैं खुद खुदा हूँ. सो हम. यह नाम तुम्हे दिया गया है. यह तुम नहीं हो. एक बार एक संत जंगल के बीच मैं अपनी झोपड़ी मैं थे. तब वहां कोई ढेर सारा खाना लेके आ गया. उन्हें हैरानी हुई कि ऐसा क्यूं हुआ. तभी वहां ३-४ लोग आये ओर उनसे कहा कि हम भूखे हैं, हमें भोजन चाह्यिये. संत  ने कहा कि मिल जाएगा. वह लोग हैरान हुए ओर कहा कि यहाँ तो कुछ नज़र नहीं आता है. तब संत ने कहा कि "सच है कि मेरे पास कुछ नहीं है, लेकिन मैं जिसके पास हूँ उनके पास सब कुछ है. "   माँ बच्चे  को जन्म देने से पहले ही उसमें दूध आ जाता है. प्रकृति का नियम है कि जहाँ प्यास होनी होती है वहां पहले से पानी व्याप्त होता है. यह दूसरी बात है कि आपको  दीखता नहीं है.   आप पूर्ण हो क्यूंकि आप पूर्ण से बने हो ओर पूर्ण मैं रहते हो ओर पूर्ण मैं जाना है. पूर्ण मैं से पूर्ण को निकालने से क्या पूर्ण अधूरा हो जाता है. आप अकेले से बोर क्यूं होते हैं, क्यूंकि आप ने अपने आप को नीरस कर दिया है. आपके पास जिस परमात्मा को होना था वह आपको कहीं ओर दीखता है. आपके पास

अति सूक्ष्म परमात्मा - live ashtavakra by Sri Sri RaviShankarji - Day 11

 जनक अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए अनुभव करते हैं कि वह मुक्त हैं, इसी वक़्त अपने आप को स्वतन्त्र पाते हैं. ओर लगभग अपने आसन से उछाल लगा जाते हैं ख़ुशी के मारे "अहो निरंजन !!". वह अपने आखरी दम तक राजा रहे, अपना राज्य चलाया, न किसी आश्रम मैं भागे ओर न ही किसी जंगल मैं निकल गए. जनता जनार्धन कि सेवा करते रहे ओर मुक्त भी रहे. उसी प्रकार जब तुम भी इस स्थूल रूप मैं खोये होते हो तो अपने सूक्ष्म को नहीं देख पाते हो जो तुम हो. जब तुम सूक्ष्म तक नहीं जा पाते हो तब अति सूक्ष्म तो बहुत दूर कि बात है, इसलिए परमात्मा से तुम्हारा संपर्क नहीं हो पता है.  अगर तुम्हारी नज़र पेड़  पर अटकी हो तो उसके पीछे का आसमा तुमसे ओझल हो जाएगा, न बदल नज़र मैं होंगे ओर न ही उड़ते फिरते निर्भीक पंछी दिखेंगे. तुम्हारा ध्यान तब ही सफल हो पाएगा जब तुम इन बातों का ध्यान रखोगे. ध्यान मैं कुछ पाने का प्रयास न करो, कुछ होने कि कोशिश न करो, अकिंचन रहो ओर सिर्फ देखो कि क्या हो रहा. इस कि चिंता नहीं करो कि क्यूं हो रहा है, बस देखो ओर देखते देखते ही तुम सूक्ष्म कि ओर बड़ते जाओगे ओर एक दिन अपने से मुलाक़ात हो जाएगी. जब ख

A public lie

The home minister of India Mr. P. Chidambaram seems to have landed into the wrong job at the right time. There is upsurge of Maoists, there are series of trials on terrorists and the country is witnessing attacks on saints. Instead of acknowledging the lapses in internal security and how we manage terror he is lost in words. Like for example you take the recent case of attack on Sri Sri Ravishankar. The karnataka police calls it a incident. Mr. Home Minister calls it "an internal brawl". They claim that Sri Sri had left the place of incident 5 mins before it happened. Its like saying saying "The prime minister convey was leaving and somebody fired at the last car in convey. Fortunately the prime minister was in first car but the shooter did not know. So a bodyguard got hurt. Our internal investigation has revealed that there was an conflict between the shooter and the bodyguard. They were not keeping in good terms and as a result of last night brawl between the two t