भाव में मस्त रहो लेकिन बिना होश खोये. अष्टवक्र कहते हैं "लयम वृज", लय में रहो. दिल की सुनो. भाव की तरफ भी ध्यान दो. जिस प्रकार संगीत में पकड़ होती है की वह अपनी धुन में हमें भुला देता हैं, हम डूब जाते हैं उसी तरेह ज़िन्दगी में चलते रहो, बड़ते रहो, जो मकसद चुने हैं पूरा करते रहो लेकिन चलते चलते यह न भूल जाओ की तुम किसी एक घटना या दृश्य से चिपके हुए हो.
जैसे शीशे में हम अपनी तस्वीर देखतें हैं, सचते सवार्नते हैं, अगर कहीं हम उसी तस्वीर से चिपक जायें ओर उसे ही एक मात्र सत्य मान लें तो फिर हमारा विकास नहीं होगा ओर हम अटक जाएँगे ज़िन्दगी में. शीशा कभी किसी के दृश्य को अपने में चिपका कर नहीं रखता है, जो भी आता है उसे वही दिखता है ओर आगे बड़ते रहता है. उस शीशे की तरेह बनो. सजो , मस्ती करो, सवारों लेकिन उन दृश्य में न खो जाओ. तुम दृष्टा हो.
लेकिन जब वह दृश्य घटित हो तो उसमें पूरी तरेह डूब जाओ, जैसे इसका कोई अंत न हो. उस दृश्य में जो मस्ती है वह सारी अपना लो. ओर चलते रहो. लय में रहो.
यह घटनायें समुद्र की लहरों की तरेह होतीं हैं, उन में उछल, खुद, मस्ती होती है ओर फिर वह उस गहरे समुद्र में समां जातीं हैं. कुछ क्षण मात्र का विश्राम होता है ओर फिर उछलती हैं. तुम भी झूमो, गाओ. इस अनुभव को ही सत्य जानो.
सत्य के कई आयाम होतें हैं. ओर हर आयाम में वह सत्य होता है. अंत में सिर्फ एक सत्य होता हैं लेकिन सफ़र में वह कई रूप में आता है. तुम्हे लगता है वह अलग है लेकिन उसका स्वरुप देखो तो स्वाभाव एक ही होता है.
पहले कहा की सिर्फ साक्षी रहो ओर अब कहतें हैं की लय में मस्त रहो. बुद्धी को तर्क चाहिए इसलिए उसे साक्षी दिया, दिल को रस चाहिए इसलिए उसे लय दी. अब आप किसी एक को लेके तो नहीं बैठ सकते. दोनों के बीच का मद्ये मार्ग आप को होश में भी रखता है ओर लय में भी.
जैसे सुख दुःख. सुख की चाह में दुखी रह सकते हो या फिर सुख चला न जाये उसमें दुखी रह सकते हो या फिर दुःख में कहीं ओर दुखी न हो जायें इस भय में ओर दुखी रह सकते हो. लेकिन क्या तुम हमेशा सुखी या दुखी रह सकते हो. क्या दुनिया के सारे लोग चोर हैं, ४२० हैं, या सारे सज्जन हैं.
क्या कभी साइकिल पूरी तरेह एक तरफ या दूसरी तरफ हो कर चलायी है. अगर हाँ तो आपका एक पांव या दूसरा पांव दर्द से परेशान हो गया होगा या फिर दोनों पांव अगर दोनों का सहारा लिया हो तो. साइकिल सीखते वक़्त हम एक या दुसरे तरफ गिरते जरूर हैं लेकिन फिर उठके उस मकाम तक पहुँच जातें हैं जब न तो हम अधिक दायीं ओर न अधि बायीं तरफ होतें हैं, मध्ये मार्ग में संतुलन होता हैं, चलने की मस्ती होती है, सतर्कता होती है, सरलता ओर सजगता होती है. वह तुम्हारी मंजिल है ओर वह तुम्हे अभी उपलब्द है.
पाचों तत्वों में पाचों तत्त्व मौजूद हैं. आपके शरीर में ९८% आकाश तत्व है. आपकी त्वचा को microscope में देखो तो वह मच्छार दानी की तरेह दिखेगी. उसमें से २% बचा जिसमें ७०% पानी हैं. उस पानी में भी आकाश है. अब आप ही सोचो की आप एक तरंग हो या फिर एक ठोश वस्तु हो. आपके सामने ओर आस पास जो लोग दिखतें हैं, उनका आकर होता है, उन्हें छु भी सकते हो लेकिन फिर आधुनिक वैज्ञानिक जो पता किया है आकाश तत्व के बारे में क्या वह गलत है? यह सत्य अष्टावक्र हजारों वर्ष पहले कह गए. हमारे भी इतने जन्म निकल गए ओर अभी तक क्यूं नहीं जान पाए?
जैसे शीशे में हम अपनी तस्वीर देखतें हैं, सचते सवार्नते हैं, अगर कहीं हम उसी तस्वीर से चिपक जायें ओर उसे ही एक मात्र सत्य मान लें तो फिर हमारा विकास नहीं होगा ओर हम अटक जाएँगे ज़िन्दगी में. शीशा कभी किसी के दृश्य को अपने में चिपका कर नहीं रखता है, जो भी आता है उसे वही दिखता है ओर आगे बड़ते रहता है. उस शीशे की तरेह बनो. सजो , मस्ती करो, सवारों लेकिन उन दृश्य में न खो जाओ. तुम दृष्टा हो.
लेकिन जब वह दृश्य घटित हो तो उसमें पूरी तरेह डूब जाओ, जैसे इसका कोई अंत न हो. उस दृश्य में जो मस्ती है वह सारी अपना लो. ओर चलते रहो. लय में रहो.
यह घटनायें समुद्र की लहरों की तरेह होतीं हैं, उन में उछल, खुद, मस्ती होती है ओर फिर वह उस गहरे समुद्र में समां जातीं हैं. कुछ क्षण मात्र का विश्राम होता है ओर फिर उछलती हैं. तुम भी झूमो, गाओ. इस अनुभव को ही सत्य जानो.
सत्य के कई आयाम होतें हैं. ओर हर आयाम में वह सत्य होता है. अंत में सिर्फ एक सत्य होता हैं लेकिन सफ़र में वह कई रूप में आता है. तुम्हे लगता है वह अलग है लेकिन उसका स्वरुप देखो तो स्वाभाव एक ही होता है.
पहले कहा की सिर्फ साक्षी रहो ओर अब कहतें हैं की लय में मस्त रहो. बुद्धी को तर्क चाहिए इसलिए उसे साक्षी दिया, दिल को रस चाहिए इसलिए उसे लय दी. अब आप किसी एक को लेके तो नहीं बैठ सकते. दोनों के बीच का मद्ये मार्ग आप को होश में भी रखता है ओर लय में भी.
जैसे सुख दुःख. सुख की चाह में दुखी रह सकते हो या फिर सुख चला न जाये उसमें दुखी रह सकते हो या फिर दुःख में कहीं ओर दुखी न हो जायें इस भय में ओर दुखी रह सकते हो. लेकिन क्या तुम हमेशा सुखी या दुखी रह सकते हो. क्या दुनिया के सारे लोग चोर हैं, ४२० हैं, या सारे सज्जन हैं.
क्या कभी साइकिल पूरी तरेह एक तरफ या दूसरी तरफ हो कर चलायी है. अगर हाँ तो आपका एक पांव या दूसरा पांव दर्द से परेशान हो गया होगा या फिर दोनों पांव अगर दोनों का सहारा लिया हो तो. साइकिल सीखते वक़्त हम एक या दुसरे तरफ गिरते जरूर हैं लेकिन फिर उठके उस मकाम तक पहुँच जातें हैं जब न तो हम अधिक दायीं ओर न अधि बायीं तरफ होतें हैं, मध्ये मार्ग में संतुलन होता हैं, चलने की मस्ती होती है, सतर्कता होती है, सरलता ओर सजगता होती है. वह तुम्हारी मंजिल है ओर वह तुम्हे अभी उपलब्द है.
पाचों तत्वों में पाचों तत्त्व मौजूद हैं. आपके शरीर में ९८% आकाश तत्व है. आपकी त्वचा को microscope में देखो तो वह मच्छार दानी की तरेह दिखेगी. उसमें से २% बचा जिसमें ७०% पानी हैं. उस पानी में भी आकाश है. अब आप ही सोचो की आप एक तरंग हो या फिर एक ठोश वस्तु हो. आपके सामने ओर आस पास जो लोग दिखतें हैं, उनका आकर होता है, उन्हें छु भी सकते हो लेकिन फिर आधुनिक वैज्ञानिक जो पता किया है आकाश तत्व के बारे में क्या वह गलत है? यह सत्य अष्टावक्र हजारों वर्ष पहले कह गए. हमारे भी इतने जन्म निकल गए ओर अभी तक क्यूं नहीं जान पाए?
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