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अति सूक्ष्म परमात्मा - live ashtavakra by Sri Sri RaviShankarji - Day 11

 जनक अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए अनुभव करते हैं कि वह मुक्त हैं, इसी वक़्त अपने आप को स्वतन्त्र पाते हैं. ओर लगभग अपने आसन से उछाल लगा जाते हैं ख़ुशी के मारे "अहो निरंजन !!". वह अपने आखरी दम तक राजा रहे, अपना राज्य चलाया, न किसी आश्रम मैं भागे ओर न ही किसी जंगल मैं निकल गए. जनता जनार्धन कि सेवा करते रहे ओर मुक्त भी रहे.

उसी प्रकार जब तुम भी इस स्थूल रूप मैं खोये होते हो तो अपने सूक्ष्म को नहीं देख पाते हो जो तुम हो. जब तुम सूक्ष्म तक नहीं जा पाते हो तब अति सूक्ष्म तो बहुत दूर कि बात है, इसलिए परमात्मा से तुम्हारा संपर्क नहीं हो पता है. 

अगर तुम्हारी नज़र पेड़  पर अटकी हो तो उसके पीछे का आसमा तुमसे ओझल हो जाएगा, न बदल नज़र मैं होंगे ओर न ही उड़ते फिरते निर्भीक पंछी दिखेंगे.

तुम्हारा ध्यान तब ही सफल हो पाएगा जब तुम इन बातों का ध्यान रखोगे. ध्यान मैं कुछ पाने का प्रयास न करो, कुछ होने कि कोशिश न करो, अकिंचन रहो ओर सिर्फ देखो कि क्या हो रहा. इस कि चिंता नहीं करो कि क्यूं हो रहा है, बस देखो ओर देखते देखते ही तुम सूक्ष्म कि ओर बड़ते जाओगे ओर एक दिन अपने से मुलाक़ात हो जाएगी. जब खुद से मिलोगे तो खुदा अपने आप आ जाएँगे.

अगर तुम सेल फ़ोन पे ध्यान दोगे ओर उसे ही सब जानोगे तब तुम उस tower तक नहीं पहुँच पाओगे जो इन तरंगों को पकड़ता है ओर सब तक पहुंचता है.

तुम एक समुद्र मैं उठी लहर हो, लेकिन तुम्हारा अस्तित्व का आधार सारा समुद्र है. तुम सतह पर अलग अलग लेहेरें हो. अलग अलग दीखते हो लेकिन एक ही समुद्र से उत्पन होते हो ओर उसमें समां जाते हो. तुम उसके ही हो. तुम वही हो. येही तुम्हारी आत्म ज्ञान का अंत है.

तुम्हारे जन्मदिन को जयंती क्यूं कहतें हैं, क्यूंकि इस दिन जय का अंत होता है. जब दो होते हैं तब जय ओर पराजय होती है. तुम किसके साथ लड़ रहे हो. यह शरीर पाने के लिए तुम्हे संघर्ष करना पड़ा. अब इस शरीर पाके भी झूस रहे हो. किसके साथ लड़ रहे हो, क्यूं लड़ रहे हो. तुम अलग नहीं हो. तुम दोनों एक ही तरफ हो. हर जन्म दिन पर तुम्हे इस बात को फिरसे याद करना होगा, ओर समझना होगा कि यह युद्ध नहीं है, यह योग है जो तुम्हे योगता देगा. उस योगता से तुम्हे आत्म शांति मिलेगी. तुम्हारी उर्जा तुम्हारे ओर तुम्हारे आस पास के जन समुदाय के लिए खर्च होगी.

तुम्हारे आस पास संघर्ष होता है क्यूंकि तुम्हे जय कि तलास होती है, तुम्हारे आस पास शांति होगी अगर तुम खुद शांत होगे. खुद को शांत करने के लिए  तुम्हे इस शरीर को इस संसार का अंग मान कर उसकी क्रियाओं मैं उसकी मदद करनी होगी ओर अपने आप को साक्षी बनाये रखना होगा. यह निर्णय अभी ओर इस वक़्त ही होगा. यह भाविस्ये मैं होनी वाली घटना नहीं है.

आप जहाँ भी हैं , जो भी कार्य करते हों, उसमें अग्रसर रहो, कुछ त्यागने कि आवश्कता नहीं है, कर्तव्य विमूड होने कि जरूरत नहीं. जनक कि तरेह आप भी अपनी सरकार चला सकते हो ओर मुक्त रह सकते हो.
 

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