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Breaking the habits of mind - becoming free of sins

Mind loves games and deception. It gets trained to like sadness and becomes master in duping you to believe that sadistic is its nature. As you attempt to deviate from the set pattern it hits back with more vengeance.

मन दुःख की आदत डाल लेता है।  आपको ऐसा लगने लगता है की यही आपका स्वाभाव है।  और जब आप इससे दूर होने की कोशिश करते हो तो मन अपने बल से इसे दबोच लेता है।

जब आप छोटे थे तो अपने स्वभाव मैं थे।  खुश थे।  खुशद थे।  लेकिन फिर बीमार पड़े, कस्ट हुआ , लोग आये , वह भी आये जिसने कभी ध्यान नहीं दिया और आपके मन ने धारणा  बैठा ली "अगर मैं दुखी रहता हूँ तो सब मुझे पूछते हैं ". ओर फिर शुरू होती है ज़िन्दगी भर की लड़ाई।  अहंकार और दुखी मन की मिली भगत मैं आप कभी डूबते हो तो कभी उठते हो।  

यह पाप सिर्फ मेल की एक परत है।  इसको ज्ञान की गंगा मैं डुबकी लगा कर धो डालो।  फिर आप आपने असली स्वभाव मैं डुबकी लगाओगे।

जिसमें सिर्फ
आनंद है
शांति है

बेहतर यही होगा की आप जल्द से जल्द जीवन जीने की कला सीख लें और इस जीवन मैं मस्त हो जायें।

When you were born, you were in elements. Happy and carefree. As you grew you would fall sick and everyone around will come enquiring about your well being. Your mind then builds the identity/belief that "if i am sick then people ask for me, care for me". Thus, begins a journey of coping up and living with identity that was never yours. A joint venture of a sad mind and distorted ego takes you for a spin.

Thus the path to break away becomes rougher and harder. You always keep falling back to easy, to give up, to believe that sadness is your nature.

But did you know sadness/sin is only skin deep. Your taking a dip in the Ganges is synonymous for washing away of all sins because sin is like mud sling body. You wash the body in the purity of knowledge and the mud just slips away.

Did you know that beyond the skin you are pure.
Beyond the sin is real you.
The perfect.
The serene.
The peaceful.

So, don't go by the colour of your skin. It will fade away and wrinkle in time, before it does its better you learn the art of living. 

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