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In search of shiv tatva - शिव तत्त्व की प्रतीक्षा मैं

Where is shiv ?
It is said that the entire universe is materialisation of one shiv sankalp (thought). But what happened to the creator after the world was created on his behest. Did he disappear? Did he hide? Is he dormant?

शिव कहाँ हैं? कैसे हैं ? कौन हैं?
कहते हैं यह सृस्टि एक शिव संकल्प का परिणाम है. लेकिन फिर वह कहाँ चले गए या फिर यहीं कहीं हैं, छुपे बैठे हैं।

It is said that

  1. it is in everything but its not everything. 
  2. it can be found only via Guru (an enlightened master). You dont have direct access to shiva principle.
  3. only grace can bring it forth to you, no effort or manipulation can influence its decision to reveal
  4. it can come in  a form which is dear to you
शिव तत्त्व के बारे मैं कुछ मान्यताएं हैं , जैसी की 
  1. सब उसमें है पर वह सब मैं नहीं हैं 
  2. वह सिर्फ गुरु की सानिध्य मैं मिलते हैं।  
  3. सिर्फ कृपा से जागृत होते हैं , अकारण , अकरम से 
  4. अक्सर तुम्हारे पूजनीय रूप मैं प्रकट भी हो सकते हैं 

So what do you do in the meantime?
Grace is indeterminate, beyond demand.
Its beyond time and reason and action. Its not a fruit of well defined actions or merits gathered via good deeds or any other logical culmination of effort. 


तब आप क्या करोगे तब तक.
कुछ कहतें हैं के संकल्प करो और अपने प्रिये जान को समर्पित कर दो।  फिर धैर्ये से प्रतीक्षा करो।

Wait.
प्रतीक्षा
Infinite patience.
असीम धैर्य

You also cannot remain idle. You need to be either in love or in action or in both.
लेकिन चुप चाप बैठ भी नहीं सकते।  कुछ तो कर्म करना पड़ेंगे और कुछ भक्ति मैं नयन बंद करने होंगे.

Grace has some linkages to devotion to divine and also to good deeds for the betterment of society. Though, there is no clarity of the link.
कृपा का भक्ति और कर्म से कुछ सम्बन्ध है।  लेकिन कैसे या कैसा मुझे पता नहीं।

You cannot ask it to present itself because then it will be a limited expression of the form, limited by the laws of nature. Even light is limited expression of energy.
अगर आप उसे रूप मैं ढूढ़ते हैं तो वह सिमित है. हर रूप प्रकृति के नियमोें मैं बंधा हैं. अगर वह रौशनी हैं तो वह भी ऊर्जा का सिमित अभिव्यक्ति है.

It is said to be an experience. The experience happens by itself when self decides and finds it appropriate to express.
शिव एक अनुभव हैं. वह अपने आप, अपने संकल्प से प्रकट होते हैं।

What have you done so far in finding your God?

Do think its important to know who the primordial father/creator is/was? Or, can you happily ignore its presence and continue dragging around?
क्या आप उत्सुक नहीं होते हो उससे मिलने के लिए जिसने आपको बनाया है?
या फिर इस माया जाल के चक्रव्यू मैं मस्त हो।

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