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Vibhuti Yoga - 9th chapter of bhagvad geeta

You have eyes, ears to engage in the world, to benefit the world. If you are only lost in meditation with closed eyes then what is the use of these eyes. They are given to do some karma , तुम्हे कर्त्तव्य करने के लिए आँखें , कान और शरीर दिया जाता है, जिससे तुम कर्त्तव्य करो और कर्म करते करते जब राग द्वेष उठें तो उनको इस्वर मैं समर्पण कर दो।  when you engage in the worldly affairs it is natural for you to get attracted to certain aspects of the work and hate or dislike certain aspects of the work. When these attractions or aversions come then is the time for you to surrender them to me and move on with your work. This is spirituality. यही अध्यात्म हैं।  व्यवहार मैं अध्यात्म आ जाये तो जीवन पूर्ण होने लगता है.

इस्वर को अपना मान लेते हो , उससे संबंद जोड़ लेते हो तो इस्वर भी बुद्धि देने लगता है. कभी कभी रति/भक्ति और ज्ञान एक साथ आते हैं और अधिकतर पहले भक्ति प्रेम आता है और फिर ज्ञान आता है, बुद्धि  आती है.

जब बच्चा जन्म लेता है तब  जानता की माँ क्या है लेकिन फिर भी वह उससे प्रेम करता है. तुम भी पहले जान नहीं सकते हो की इस्वर क्या है लेकिन जब तुम्हे लगने लगता है की वह भी तुम्हारे सुख दुःख के साथी है तब तुम भी उसके करीब जाने लगते हो और वह भी तुम्हे ज्ञान देता है, बुद्धि देता है जिससे वह तुम मैं प्रकट हो सके.

Till the time you consider divine in third person it remains distant from you. It remains cause of all your fear. Even the fear comes out of divine. Even the adversity comes out from the divine. The not so good times are simply there for you to reflect and go deeper into your self. To help you make divine from third person to second person. वह से तुम बनने मैं इस्वर तुम्हारे दुःख का कारन होता है. जिसमें तुम इस्वर देखनें लगते हो वह गुरु होता है , योगी होता है. गुरु मैं इस्वर प्रथम पुरुष मैं होतें हैं, मैं ही इस्वर हूँ. In Guru the divine is in first person and therefore when you are attracted to Guru you automatically start experiencing the presence of the the divine. बिना गुरु के सनिध्ये के इस्वर दर्शन, अनुभूति असंभव है.

So divine is the cause of all the good, bad, character, achievements, failures and your growth. You cannot grow without him. He will never appear if he does not desire to. When your love reaches this state of surrender, this state of offering then divine helps you with some intellect, then divine brings a Guru into your life, then divine allows you to witness him in second person.

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Gurudev +Sri Sri Ravi Shankar ji is giving commentary on 9th chapter of bhagvad geeta. Its a live webcast over these three days. Today was the first day and the above is what I could gather from it. If you want to get insights into the true treasures of divine (भूति जो सबसे बहुमूल्ये है उसे विभूति कहतें है ) then you should get into the 9th chapter of bhagvad geeta. Your mind runs after some attraction or other , तुम्हारा मन किसी न किसी ऐश्वर्ये के पीछे भागता है लेकिन जब आपको सबसे बहुमूल्ये ऐश्वर्ये मिलता है तब आपको विभूति योग होता है.

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