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Tejgyaan from Sirji

Have you ever played and enjoyed Snakes and ladder at some point in your life?

I can guess that position 99 would have been most enviable for you. Why do feel so comfortable and eased out at 99?

You dont care whether you get double six or five. You are just waiting for your ONE. ONE move and you will be released from the game. 
You enjoy watching rest of players struggling with the snakes and hoping for the ladder. Your ladder has taken you to 99. You are relieved.

But when you started the game. You feared the snakes before every move. Your present was in anticipation of harm caused by snakes and you would get hopelessly cheerful if you happen to find the ladder. 
हर चाल मैं सांप का भय क्यूं.

Same way in life the ladder of spirituality will take you to 99. The only way you walk/climb on the ladder is through satsang and seva. Persistent seva. Relentless seva. Tireless seva.
If you stop in middle to enjoy the view of flower pots and balconies then you will have to start again with a 6.

You will only get the advantage of 99 after reaching there.A guru can give you knowledge to know at start of game itself that there is 99. Trust me there is. उस अद्रस्य सीडी को पकड़ लो, गुरु के हो लो, सिर्फ वह ही तुम्हे पार करवा सकता है. If you believe him then your snakes become easier to handle. Your fear and grasp of Maya subsides.

माँ के पेट से निकल के माया के पेट मैं चले जाते हो. माया के पेट से अपने पेट मैं चले आते हो. पेट मैं बंदी होना अच्छा  लगता है क्या? पेट से मुक्ति की युक्ति क्यूं नहीं खोजते हो. 
जब माँ के पेट से निकलते हो तो दुनिया कहती है की नया जन्म हुआ. लेकिन वही माँ अपने पालन पोषण मैं और तुम्हे समाज के लिए तैयार करने के लिए अपने अनुभव तुमपर न्योछावर करती है. उसकी ज़िन्दगी तुम फिरसे जीते हो. क्या तुम वाकई उसके पेट से निकले हो. You have to come out of parental programming. The genes is the first structure that you get bound to.
Do not impose your learning and experience on your children. Allow them to experience and explore with their own and on their own. Do not restrict their spiritual growth. Encourage them. Mistakes are made by all generations. Learnings are gained by all generations.
अपने पेट की भूख  मिटने कहाँ कहाँ नहीं भटके हो. 

The job was paying you well so you stayed there. Your heart was yearning for something else. But you would not budge and listen to self. You would only listen to the robot. The robot is supposed to speak on your behalf. The robot chatters when you think. Now it mutters when you don't instruct it to do so.


Don't let the robot ruin your life. Tell him to stop fooling and start to listen to self. You have forgotten your self in the person that the robot has made you become. 
तुम वह व्यक्ति नहीं हो जो रोबोट तुम्हे दिखा रहा है. तुम एक सकारात्मक रचना हो. अपने आत्म स्वरुप को सुनो और रोबोट को भी सुनाओ की इसमें ज्यादा सुख और ख़ुशी है.


तुम यह भूत , वर्तमान और भविष्य की पेटी लेके क्यूं अपना सर भारी करते हो. तुम्हारे पृथ्वी  लक्ष्य को समझो. ज्ञान लो की यहाँ सब क्यूं हो रहा है, किसलिए हो रहा है.
एक व्यति ने देखा की कांच के पीछे एक बंद कमरें मैं कुछ लोग चाकू लेके किसी का पेट चीर रहे थे. वह तुरंत शीशा तोड़ कर अन्दर कूदा और उनको मरने लगा. सब लोगों ने पकड़ के उससे रोको और समझाया की इधर ऑपरेशन हो रहा है क्यूंकि इसका पेट खराब था. वह अज्ञानी क्या जाने. 


पेट, पेटी, पट्टे से सतर्क हो लो.


Content Source: Sirji talk on aastha channel, today eveing in lieu of Awakening with brahmakumaris

Comments

आप तो बढ़िया हिन्दी लिखते हैं. पूरी पोस्टें हिन्दी में क्यों नहीं लिखते?
dhaval said…
सबसे पहले आपका शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ की आप ने मेरी हिंदी को सराहा और प्रोत्षाहित किया. मन दुइ भाषा मैं सोचता है इसलिए अनुभव भी दुई भाषा मैं होतें हैं. और लेखनी तो वही लिखेगी जो मन सोचेगा.
लेकिन मेरी भी एक आत्मिक इक्छा है की सारा वर्णन हिंदी मैं हो.
आपका भी वैसे कम योगदान नहीं है हिंदी के प्रचार के लिए. आपसे मिल कर बहुत अच्हा लगा.

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