अन्नदाता सुखी भव !!
यह मन्त्र है गुरुदेव का
अन्न के हर दाने को
लेने से पहले
चार बार कहने को
तुम्हारी दुआ किसान
को मिलती है
किसान सुखी और समृद्ध
रहता है
उसकी फसल मैं
प्रेम और रस होता है
व्यपारी किसान को सही
सही दाम देता है
लोभ मैं नहीं होता है
अन्न तुम तक आता है
घर की महिला उस
अन्न को मन से बनाती है
अन्नापुर्नेस्वारी कहलाती है
वही महिला चंडी का रूप
भी ले सकती है
जब व्यापारी लोभ मैं
किसान को कम दाम
और तुम्हे भी नोंचता है
तुम उसे लूटने को कोसते हो
किसान गरीब होता जाता है
आत्म-हत्या की ओर
अग्रसर होता है
समाज मैं बीमारी और
भ्रस्टाचार बड़ता है
एक दुसरे के प्रति
नफरत, दुराचार
बड़ता है
अन्नदाता सुखी भव !!
से किसान ,व्यापारी और
तुम्हारी घर गृहस्थी
सुख और सम्पन रहती है
समाज मैं प्रेम और
भाईचारा बड़ता है
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inspired from evening of satsang in presence of HH +Sri Sri Ravi Shankar ji at +Art of Living international ashram on kanakapura road in bangalore
यह मन्त्र है गुरुदेव का
अन्न के हर दाने को
लेने से पहले
चार बार कहने को
तुम्हारी दुआ किसान
को मिलती है
किसान सुखी और समृद्ध
रहता है
उसकी फसल मैं
प्रेम और रस होता है
व्यपारी किसान को सही
सही दाम देता है
लोभ मैं नहीं होता है
अन्न तुम तक आता है
घर की महिला उस
अन्न को मन से बनाती है
अन्नापुर्नेस्वारी कहलाती है
वही महिला चंडी का रूप
भी ले सकती है
जब व्यापारी लोभ मैं
किसान को कम दाम
और तुम्हे भी नोंचता है
तुम उसे लूटने को कोसते हो
किसान गरीब होता जाता है
आत्म-हत्या की ओर
अग्रसर होता है
समाज मैं बीमारी और
भ्रस्टाचार बड़ता है
एक दुसरे के प्रति
नफरत, दुराचार
बड़ता है
अन्नदाता सुखी भव !!
से किसान ,व्यापारी और
तुम्हारी घर गृहस्थी
सुख और सम्पन रहती है
समाज मैं प्रेम और
भाईचारा बड़ता है
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inspired from evening of satsang in presence of HH +Sri Sri Ravi Shankar ji at +Art of Living international ashram on kanakapura road in bangalore
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