Skip to main content

Enjoy your family

The last words of +Michael Fischman before we parted to our individual destinies were "Enjoy your family". Thanks to him the bonding with the spouse have improved over the last few days. She is wondering "Why didn't I met Michael many years ago". She has been struggling to put good sense into my head but has failed miserably. A gentle collection of wordy slap from the conviction of Michael has brought me back into the path.

What is your family?
At first shot it looks your spouse if you are married, your kids if you are parent, your parents, your siblings, your cousins.

As you meditate more on the term "family" it gradually gathers momentum and expands to fill the universe. It simple is a reflection of your sense of belongingness.

If you think your neighbors belong to you , they become your family.
If you think your neighbors neighbors belong to you then they become your family.
If you think everybody connected to +Art of Living  belong to you then they become your family.
If you take pride in the city you live then everyone there becomes your family.
If you are happy to be born in a certain city then its people become your family.
If you think all those who speak hindi are sweet then they become your family.

What is your definition of family?

It is a natural progression. The FAMILY is a burden as long as you dont belong to them. A little shift and the world of love sweeps you off the floor.


Comments

Popular posts from this blog

Success is exchange of energy

The definition of success is very elusive. It means different things in different phases of life to different people. When I was in school and college it was to pass somehow. When I was in 12th it was to get into engineering somehow. When I was in job it was to make more money anyhow. When you were in marriage it was to demand happiness and feel proud in pronouncing to yourself that every act of a frustrating job was for the sake of family and their well being. I was focusing on doing. I was focusing on achievement. So whenever I reflected back in life I always felt less. I could have been an IITian, I could not crack CAT. I could not join an organization during their early stock offer days. I could not go to US and earn in dollars. I simply missed doing too many things.  Now I feel lack of achievement. Now I feel lack of doing. Did I miss out on something while I was undergoing all this doing? Why was I nervous all this while? Why did one achievement led to other? Why...

तुम दीन नहीं हो - live ashtavakra commentary by Sri Sri Ravishankar ji

तुम वही हो. तुम सूर्य कि किरण नहीं, तुम उस किरण का विस्तार हो. तुम सूर्य हो.  जिस प्रकार सूर्ये अपनी किरणों को हर खिड़की के माध्यम से हर घर मैं भेजता है, उसी प्रकार परमात्मा अपनी पूर्णता को छोटी छोटी आत्मायों मैं भेजता है.  यह बात दूसरी है कि जब आत्मा अपने पुर मैं वास करने लगती है, अपने शरीर रुपी घर मैं रहने  लगती है तो भूल जाती है कि वह सिमित नहीं है, उसका विस्तार ही परमात्मा है.  लेकिन घर मैं घुसने के बाद आप कांच के टुकड़े मैं सूर्य का प्रतिबिम्ब देखते हो ओर अपने आप को सिर्फ एक किरण मात्र समझने लगते हो. जरा बाहर झाँक कर भी देखो, सूर्य का अनुभव तो करो. तुम्हारे आस पास भी वही सूर्य का अंश है. तुम्हारे पड़ोस मैं भी वही सूर्य कि किरण है, तुम्हारे गाँव मैं जो रिश्तेदार हैं वहां भी वही सूर्ये है. सूर्य कोई भेद भाव नहीं करता. तुम क्यूं ऊँच- नींच मैं पड़े हो.  तुम्हारे दुःख का कारण  क्या है. तुम गुरु से तो मिले हो. तुमने गुरु को साक्षात् किया है. लेकिन तुम संपूर्णतः यह निश्चय नहीं कर पाए हो कि येही सत्य है. पूरे भरोसे कि कमी होने से ही दुःख होता है....

सोहम का महत्व - live ashtavakra by Sri Sri RaviShankarji

मैं वही हूँ. न मैं त्रितिये व्यक्ति मैं हूँ, न द्वितीये व्यक्ति मैं हूँ. मैं खुद खुदा हूँ. सो हम. यह नाम तुम्हे दिया गया है. यह तुम नहीं हो. एक बार एक संत जंगल के बीच मैं अपनी झोपड़ी मैं थे. तब वहां कोई ढेर सारा खाना लेके आ गया. उन्हें हैरानी हुई कि ऐसा क्यूं हुआ. तभी वहां ३-४ लोग आये ओर उनसे कहा कि हम भूखे हैं, हमें भोजन चाह्यिये. संत  ने कहा कि मिल जाएगा. वह लोग हैरान हुए ओर कहा कि यहाँ तो कुछ नज़र नहीं आता है. तब संत ने कहा कि "सच है कि मेरे पास कुछ नहीं है, लेकिन मैं जिसके पास हूँ उनके पास सब कुछ है. "   माँ बच्चे  को जन्म देने से पहले ही उसमें दूध आ जाता है. प्रकृति का नियम है कि जहाँ प्यास होनी होती है वहां पहले से पानी व्याप्त होता है. यह दूसरी बात है कि आपको  दीखता नहीं है.   आप पूर्ण हो क्यूंकि आप पूर्ण से बने हो ओर पूर्ण मैं रहते हो ओर पूर्ण मैं जाना है. पूर्ण मैं से पूर्ण को निकालने से क्या पूर्ण अधूरा हो जाता है. आप अकेले से बोर क्यूं होते हैं, क्यूंकि आप ने अपने आप को नीरस कर दिया है. आपके पास जिस परमात्मा को होना था वह आपको कहीं ओर दीखता...