Skip to main content

Bliss or Bananas


Yesterday in the QnA post Bhagvad Geeta discourse Gurudev mentioned to a question from kids doing Ancient Wisdom course that

"What should be take away from Ashram?"
What do you take from a supermarket? When you go to a mall you take what you want? Do you ask me what should I take from supermarket? Same thing happens when you come to ashram for a course or seva or just a visit. 
People who come to ashram can take whatever they want. Some take prasad and go, some take some more and others take bliss and go. You can take bliss or you can take banana, the choice is yours. Also, you can leave all your worries or concerns here. 
Pain and love
 If you run away from pain you will run away from love to. Let it happen. A little pain is essential. It could be because of your karma or it could be the natural way. 
See when you come into the planet there is so much pain to you and your mother. Coming out of womb is so much pain. You have been floating and happy for six months in the womb. You did not even have to chew your food, it was directly supplied to you. Suddenly the water goes away and you have to come out. When you come out you cry. If you don't cry then others cry. If you cry and others pour their love on you. The endearing eyes of your mother, the smiles and adorations of your uncles, aunts, grandparents and all. A little pain followed by so much of love.  
But once you are established in spirituality then there is no pain. The eternal bliss is the state of the self, your atma.
Childrens goals and focus
As young ones you must learn many skills. Until you cross teens do not stop acquiring more and more talents. Learn to sing, dance, paint, languages be jack of all trades. Do not set a target or a goal that you have to become this or reach there now. Play and learn. Once you grow up then you stick to one thing. 
नाडी दोष
Two of my friends are in love and their parents are in agreement too but their horoscope shows nadi dosha for them and they are confused as to what to do. 
Guruji said "शहनाई बजने दो। " let marriage happen.
Some highlights from the commentary of Chapter 7 of Bhagvad Geeta.

Karma
People with bad karma cannot come to satsang. You can try but they will not be able to come. Even if they come there mind will be elsewhere. 
आत्म-सत्ता
हमें अपनी आत्मसत्ता मैं स्थिर होना चाहिए। हमारे चारों और सब कुछ बदलता है लेकिन एक चीज़ है जो नहीं बदलती और वोह है हमारी आत्मा सत्ता। हमें यह जानना जरूरी है।
पाप और पुण्य
लेकिन हम कब अपनी आत्मा सत्ता मैं कब विस्वास करेंगे। जब हमारे बुरे कर्म अंत हो जाये और हमें अच्छे कर्मों का फल मिलने लगे। यह हमें प्रभु कृपा से मिलेगा या फिर यह मान सकते हैं की जब हमारी श्रद्धा इतनी हो जाये की हमें गुरु के सिवा कुछ और न दिखे तो यह संभव है. 
Spirituality
अध्यात्म
जब पाप और पुण्य का हिसाब किताब हो जाता है तब अध्यात्म जनमता है। तक तक आपको कुछ चीजें अच्छी लगती है और कुछ चीजें परेशान करती है. इन अच्छी बुरी के dvaand/संघर्ष मैं आप लगे रहते हो. बुरे कर्मों के जाल मैं फंसे रहते हो। अध्यात्म सब को नसीब नहीं होता। जो इस संसार की योग माया मैं अटक जाते है उन बेवकूफों को तो बिलकुल ही नहीं। जो मुझे नहीं जानते है उन्हें तो कभी नहीं मिल सकता।
अध्यात्म मैं तुम्हारा पुण्य कर्मों का ऊदय होता है। तुम प्रकाश हो यह जान लेते हो। 

--------------------------------------------------------------------
Image courtesy Swami Madhusudan ji.
Content inspired by talk by +Sri Sri Ravi Shankar ji on Bhagvad Geeta.
Location courtesy - +Art of Living international ashram, bangalore
Tip: If you want to be blessed by Swamijies then they generally occupy the last row on left side of Gurudev on most satsang days :), you can see some of them in the picture above too... 

Comments

Popular posts from this blog

Success is exchange of energy

The definition of success is very elusive. It means different things in different phases of life to different people. When I was in school and college it was to pass somehow. When I was in 12th it was to get into engineering somehow. When I was in job it was to make more money anyhow. When you were in marriage it was to demand happiness and feel proud in pronouncing to yourself that every act of a frustrating job was for the sake of family and their well being. I was focusing on doing. I was focusing on achievement. So whenever I reflected back in life I always felt less. I could have been an IITian, I could not crack CAT. I could not join an organization during their early stock offer days. I could not go to US and earn in dollars. I simply missed doing too many things.  Now I feel lack of achievement. Now I feel lack of doing. Did I miss out on something while I was undergoing all this doing? Why was I nervous all this while? Why did one achievement led to other? Why...

तुम दीन नहीं हो - live ashtavakra commentary by Sri Sri Ravishankar ji

तुम वही हो. तुम सूर्य कि किरण नहीं, तुम उस किरण का विस्तार हो. तुम सूर्य हो.  जिस प्रकार सूर्ये अपनी किरणों को हर खिड़की के माध्यम से हर घर मैं भेजता है, उसी प्रकार परमात्मा अपनी पूर्णता को छोटी छोटी आत्मायों मैं भेजता है.  यह बात दूसरी है कि जब आत्मा अपने पुर मैं वास करने लगती है, अपने शरीर रुपी घर मैं रहने  लगती है तो भूल जाती है कि वह सिमित नहीं है, उसका विस्तार ही परमात्मा है.  लेकिन घर मैं घुसने के बाद आप कांच के टुकड़े मैं सूर्य का प्रतिबिम्ब देखते हो ओर अपने आप को सिर्फ एक किरण मात्र समझने लगते हो. जरा बाहर झाँक कर भी देखो, सूर्य का अनुभव तो करो. तुम्हारे आस पास भी वही सूर्य का अंश है. तुम्हारे पड़ोस मैं भी वही सूर्य कि किरण है, तुम्हारे गाँव मैं जो रिश्तेदार हैं वहां भी वही सूर्ये है. सूर्य कोई भेद भाव नहीं करता. तुम क्यूं ऊँच- नींच मैं पड़े हो.  तुम्हारे दुःख का कारण  क्या है. तुम गुरु से तो मिले हो. तुमने गुरु को साक्षात् किया है. लेकिन तुम संपूर्णतः यह निश्चय नहीं कर पाए हो कि येही सत्य है. पूरे भरोसे कि कमी होने से ही दुःख होता है....

सोहम का महत्व - live ashtavakra by Sri Sri RaviShankarji

मैं वही हूँ. न मैं त्रितिये व्यक्ति मैं हूँ, न द्वितीये व्यक्ति मैं हूँ. मैं खुद खुदा हूँ. सो हम. यह नाम तुम्हे दिया गया है. यह तुम नहीं हो. एक बार एक संत जंगल के बीच मैं अपनी झोपड़ी मैं थे. तब वहां कोई ढेर सारा खाना लेके आ गया. उन्हें हैरानी हुई कि ऐसा क्यूं हुआ. तभी वहां ३-४ लोग आये ओर उनसे कहा कि हम भूखे हैं, हमें भोजन चाह्यिये. संत  ने कहा कि मिल जाएगा. वह लोग हैरान हुए ओर कहा कि यहाँ तो कुछ नज़र नहीं आता है. तब संत ने कहा कि "सच है कि मेरे पास कुछ नहीं है, लेकिन मैं जिसके पास हूँ उनके पास सब कुछ है. "   माँ बच्चे  को जन्म देने से पहले ही उसमें दूध आ जाता है. प्रकृति का नियम है कि जहाँ प्यास होनी होती है वहां पहले से पानी व्याप्त होता है. यह दूसरी बात है कि आपको  दीखता नहीं है.   आप पूर्ण हो क्यूंकि आप पूर्ण से बने हो ओर पूर्ण मैं रहते हो ओर पूर्ण मैं जाना है. पूर्ण मैं से पूर्ण को निकालने से क्या पूर्ण अधूरा हो जाता है. आप अकेले से बोर क्यूं होते हैं, क्यूंकि आप ने अपने आप को नीरस कर दिया है. आपके पास जिस परमात्मा को होना था वह आपको कहीं ओर दीखता...