Skip to main content

Four types of people find love


तीन गुण
भौतिक शास्त्र ने माना है की यह सृष्टि को चलाने के लिए तीन चीजें चाहिए। जैसे पंखे को चलने के लिए तीन पंखुड़ियां चाहिए, दो से नहीं चल सकता। एक लोलक (पेंडुलम) मैं जब तक चाबी भरी हो तब तक चलती है और फिर रुक जाती है. 
भगवद गीता मैं भी श्री कृष्ण येही कहतें है। यह संसार/ब्राह्माण तीन गुणों से चलता है।  सतो,रजो और तमो गुण। यह तीनों भगवान् से उत्पन होतें हैं पर यह भगवान् नहीं होते। जो इन गुणों मैं फँस गया है वोह मुझे नहीं पा सकता। मैं इन गुणों से परे हूँ। मैंने इन्हें जन्म दिया है पर यह मैं नहीं हूँ।
परमात्मा को पाने के लिए उनकी कृपा जरूरी है. उनकी शरण मैं  जाकर इस मोह/माया जाल से तर सकते हो. बिना उनकी कृपा से कुछ नहीं होता। 
संहार
भारत ही ऐसा देश है जहाँ संहार को भी पूजा जाता है। इसलिए शिव को भगवान् माना है। बाकि जगह तो संहार को शैतान का रूप माना है जो देवता से अलग है। 
ब्रह्मा का तो सृष्टी निर्माण लगभग पूरा हो गया, अब विष्णु और शिव जी को अपना काम करना है.  
भ्रम
 तमो गुण भी भगवान् की कृति है. माँ काली का भयानक रूप भी भगवान् का ही है. माया का काम है की तुम्हे इस भ्रम मैं रखे कि हाँ अब सुख मिल सकता है। भ्रम भी भगवान् की कृति है।  
प्रेम और मोह
मोह सुख की कामना से होता है। कुछ पाने की चेष्टा होती है। इसलिए माँ का बचे के प्रति मोह , पति का पत्नी के प्रति और सब प्रकार के मोह। यह सब दुःख देते हैं क्यूंकि इनका दृष्टिकोण संकीर्ण होता है, यह सिर्फ अपने अहम् तक ही सिमित रहतें है।
प्रेम सबके प्रति होता है, उसमें सब आते हैं। जब हम प्रेम मैं होतें है तो दुःख हो ही नहीं सकता।
 In the US there was a lady who was conducting a seminar on "How to find and be in love?". She herself was 8 times divorcee and must have learnt all the things that are required to break a marriage and must be sharing her experience. 
निंदा और सम्मान
जब हम निंदा करते हैं तो जिसकी निंदा करते हैं उसके गुण धारण कर लेते है। यह निंदा की धारणा है. लेकिन जब प्रशंशा करते हैं तो कुछ ही समय मैं भूल जाते हैं।  
अक्सर देखा गया है की हम संसार को दोष देते हैं, यह गन्दा संसार है, यहाँ तो दुःख ही दुःख है. लेकिन जब हम प्रकृति का सम्मान करते हैं तब प्रकृति हमें इस संसार के परे ले जाती है. एक और दुनिया मैं जहाँ न तो कुछ घटता है और न ही बढता है. कुछ भी अव्यय नहीं होता। बस एक असीम सुख और शांति बरकरार रहती है.   
भग्वद गीता मैं श्री कृष्ण कहतें हैं कि  चार प्रकार के लोग मेरी शरण मैं आते हैं। शरण मैं आने के लिए यह लोग कुछ अच्छा कर्म करते है जो इनको मेरी कृपा दृष्टि मिलती है.

  1. दुखी 
  2. कुछ पाने की कामना से 
  3. जिज्ञासु 
  4. ज्ञानी 

दुष्कर्म और दुःख
कोई अच्छा कर्म ही तुम्हे दुःख दे सकता है।  सृष्टि मैं किसी भी प्राणी को दुःख पसंद नहीं है और न ही वह चाहता है।  लेकिन जो दुष्कर्म करता है उसे इसका आभास भी नहीं होता। इसलिए वह नरों मैं अधम ही रहता है। वह  काँटा चबाता रहता है और भ्रम में रहता है की यह सुख है। उसे यह खबर ही नहीं रहती की उसके मुंह मैं काँटा है।
दुःख मैं हम गुरु या परमात्मा की शरण मैं जा सकते है।  शरण मैं हम चरण की महिमा समझते है। 
दुःख का एक विकृत रूप होता है जिसमें लोगों को अभिरुचि होती है, उस दुःख से प्रभु नहीं मिलतें है।
In the US there are advertisements in newspaper asking for partners who can chain and beat them everyday, who can slap them with shoes everyday. This is a distorted side of the pain. This has been accepted by scientist as possible state of human mind where it is in a state where these kinds of pain is pleasurable, they may have had a childhood where they got shoe treatment everyday and considered it as integral to life. Here guruji made it clear that he was not seeing those advertisements because he was looking for such people. The whole ashram amphitheater was in peels of laughter and everyone felt so light after heavy dose of knowledge. 
 कुछ कामना हो
हम हर छोटे काम मैं भगवान् की , गुरु की कृपा मांगते है तो वोह काम आसान हो जाता है। हर काम मैं भाग्य का महत्व है। काम शुरू होने से पहले अगर हम गुरु का आशीर्वाद लें तो उसके सफल होने की सम्भावना बड जाती है. 
जैसे विध्यार्थी परीक्षा के पहले मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर के सामने प्रसाद अर्पण करते है. या आपको पार्किंग नहीं मिल रही हो तो गुरु को याद करते हैं।  
एक बार प्रभु की कृपा मांग कर फिर जोश से काम मैं जुट जातें हैं। यह नहीं की अब तो गुरु मेरे सारे काम कर देंगे और हाथ पे हाथ धरे बैठे रह जाते हैं। 
जिज्ञासु
जो लोग जाना चाहते है की यह दुनिया क्यूं हैं, मैं कौन हूँ, यहाँ आने का मेरा मकसद क्या है। 
ज्ञानी
जो लोग जानते हैं मुझे और सिर्फ अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हैं। जो कहतें हैं "मैं जो भी हूँ आपकी कृपा से हूँ ", "मुझे जो भी मिला आपकी कृपा से मिला". जो लोग मुझे जानतें हैं वोह ही कृतज्ञ हो सकते हैं। 
जीवन मैं यह चार स्थितियां आती जाती हैं। हो सकता है हम दुखी अवस्था मैं गुरु शरण मैं जाएँ लेकिन समय के साथ हम कृतज्ञता के पात्र बन जाते है. फिर हो सकता है की दुःख आये और हम गुरु की तरफ फिर से अग्रसर हो जाते है।

The self, Guru, Atma, God are all same. They refer to one and only one thing and that is love. To find love you need to surrender to the divine. To surrender you need the grace of divine. The grace is always flowing but there are only four kind of people who can connect to this grace and they are the people in

  1. Pain 
  2. Desire
  3. Seeker
  4. Wise

You can be in any of the above four state if you have done some good karma in the past. Even the evil/obsessed person does not realize that without the grace of the Guru nothing works in the world. They start work independently and display confidence outside but are seething in pain/confusion inside because they don't progress on the task the way they have planned. They have discounted the luck factor and thus suffer due to the same. That is mostly the state of atheists. But a good act somewhere shift their attention to pain and a genuine suffering brings them closer to the divine.

--------------------------------------------------
Image courtesy Swami Madhusudan ji.
Content inspired by talk by +Sri Sri Ravi Shankar ji on Bhagvad Geeta.
Location courtesy - +Art of Living international ashram, bangalore
Tip: If you want to be blessed by Swamijies then they generally occupy the last row on left side of Gurudev on most satsang days :), you can see some of them in the picture above too...

Comments

Popular posts from this blog

Success is exchange of energy

The definition of success is very elusive. It means different things in different phases of life to different people. When I was in school and college it was to pass somehow. When I was in 12th it was to get into engineering somehow. When I was in job it was to make more money anyhow. When you were in marriage it was to demand happiness and feel proud in pronouncing to yourself that every act of a frustrating job was for the sake of family and their well being. I was focusing on doing. I was focusing on achievement. So whenever I reflected back in life I always felt less. I could have been an IITian, I could not crack CAT. I could not join an organization during their early stock offer days. I could not go to US and earn in dollars. I simply missed doing too many things.  Now I feel lack of achievement. Now I feel lack of doing. Did I miss out on something while I was undergoing all this doing? Why was I nervous all this while? Why did one achievement led to other? Why...

तुम दीन नहीं हो - live ashtavakra commentary by Sri Sri Ravishankar ji

तुम वही हो. तुम सूर्य कि किरण नहीं, तुम उस किरण का विस्तार हो. तुम सूर्य हो.  जिस प्रकार सूर्ये अपनी किरणों को हर खिड़की के माध्यम से हर घर मैं भेजता है, उसी प्रकार परमात्मा अपनी पूर्णता को छोटी छोटी आत्मायों मैं भेजता है.  यह बात दूसरी है कि जब आत्मा अपने पुर मैं वास करने लगती है, अपने शरीर रुपी घर मैं रहने  लगती है तो भूल जाती है कि वह सिमित नहीं है, उसका विस्तार ही परमात्मा है.  लेकिन घर मैं घुसने के बाद आप कांच के टुकड़े मैं सूर्य का प्रतिबिम्ब देखते हो ओर अपने आप को सिर्फ एक किरण मात्र समझने लगते हो. जरा बाहर झाँक कर भी देखो, सूर्य का अनुभव तो करो. तुम्हारे आस पास भी वही सूर्य का अंश है. तुम्हारे पड़ोस मैं भी वही सूर्य कि किरण है, तुम्हारे गाँव मैं जो रिश्तेदार हैं वहां भी वही सूर्ये है. सूर्य कोई भेद भाव नहीं करता. तुम क्यूं ऊँच- नींच मैं पड़े हो.  तुम्हारे दुःख का कारण  क्या है. तुम गुरु से तो मिले हो. तुमने गुरु को साक्षात् किया है. लेकिन तुम संपूर्णतः यह निश्चय नहीं कर पाए हो कि येही सत्य है. पूरे भरोसे कि कमी होने से ही दुःख होता है....

सोहम का महत्व - live ashtavakra by Sri Sri RaviShankarji

मैं वही हूँ. न मैं त्रितिये व्यक्ति मैं हूँ, न द्वितीये व्यक्ति मैं हूँ. मैं खुद खुदा हूँ. सो हम. यह नाम तुम्हे दिया गया है. यह तुम नहीं हो. एक बार एक संत जंगल के बीच मैं अपनी झोपड़ी मैं थे. तब वहां कोई ढेर सारा खाना लेके आ गया. उन्हें हैरानी हुई कि ऐसा क्यूं हुआ. तभी वहां ३-४ लोग आये ओर उनसे कहा कि हम भूखे हैं, हमें भोजन चाह्यिये. संत  ने कहा कि मिल जाएगा. वह लोग हैरान हुए ओर कहा कि यहाँ तो कुछ नज़र नहीं आता है. तब संत ने कहा कि "सच है कि मेरे पास कुछ नहीं है, लेकिन मैं जिसके पास हूँ उनके पास सब कुछ है. "   माँ बच्चे  को जन्म देने से पहले ही उसमें दूध आ जाता है. प्रकृति का नियम है कि जहाँ प्यास होनी होती है वहां पहले से पानी व्याप्त होता है. यह दूसरी बात है कि आपको  दीखता नहीं है.   आप पूर्ण हो क्यूंकि आप पूर्ण से बने हो ओर पूर्ण मैं रहते हो ओर पूर्ण मैं जाना है. पूर्ण मैं से पूर्ण को निकालने से क्या पूर्ण अधूरा हो जाता है. आप अकेले से बोर क्यूं होते हैं, क्यूंकि आप ने अपने आप को नीरस कर दिया है. आपके पास जिस परमात्मा को होना था वह आपको कहीं ओर दीखता...