एक बार एक महात्मा के पास एक चोर आया। उसनें कहा की मुझे यह मत कहना की चोरी छोड़ दो लेकिन और कुछ भी मांग सकते हो। यह मेरा पेशा है और इसे मैं नहीं छोड़ सकता। इसके बिना मैं अधूरा हूँ।
महात्मा जी ने मुस्कुरा कर कहा की
अब से जब भी चोरी करोगे तो होश मैं करना। और कुछ करने की जरूरत नहीं हैं।चोर मान गया। सोचा यह तो बड़ा आसान है। मैं तो नींद मैं भी चोरी कर लूं। यह होश मैं रहने की क्या बात है।
दुसरे दिन चोरी करने गया तो उससे नहीं हुई। होश मैं ही आते ही उसके हाथ कांपने लगे। उसने सोचा की महात्मा जी के सत्संग का असर है। एक दिन तो रहेगा ही। फिर देखतें हैं।
अक्सर हमारा स्वाभाव सत्संग मैं कुछ और होता है और जैसे ही विशालाक्ष्मी मंडप (ये कोई भी सत्संग का स्थल/आश्रम ) छोड़ते ही साथ हमारा स्वाभाव बदल जाता है। दुनिया मैं हम कुछ और और सत्संग मैं कुछ और रहतें हैं। अक्सर सत्संग की बातें सत्संग मैं ही छूट जाती है।एक हफ्ते तक चोर होश मैं चोरी का प्रयास करते रग पर विफल रहा। उसने सोचा महात्मा जी की बातों का असर एक हफ्ते तो रहेगा ही।
एक महिना हो गया पर उससे एक भी चोरी ढंग से नहीं हुइ. आज तक उसे चोरी मैं पकड़ा नहीं गया पर अब हर चोरी मैं उसे लगता की वोह पकड़ा जाएगा और उससे चोरी नहीं हो पाती।
परेशान हो कर वह महात्मा जी से पास आया और बोल की आपने तो मेरा धंधा ही चौपट कर दिया।
जब हम होश मैं होतें है तो हमसे कोई गलत काम नहीं हो सकता है।
होश मैं आने के लिए और रहने के लिए सुदर्शन क्रिया और ध्यान आवश्यक हैं। लेकिन हमें आज की दुनिया दिखती है, आज के पैसे दीखते हैं, आज का जीवन दीखता है, किसी भी तरेह आज कमाई हो जाये फिर ध्यान कर लेंगे। ध्यान करने की जल्दबाजी नहीं करतें , क्रोध के लिए तत्पर रहतें हैं, जो हमारा स्वाभाव नहीं।
There is emergency to meditate, learn and practice sudarshan kriya. But you consider the daily routine as emergency. You have earn money today, you have to buy clothes today, you have to invest in property today. But you are not aware that you need to invest in yourself today. Your prime time has to be with the divine. The rest is for mundane. You miss this reality. You come out of this mess either in misery or in awareness. The choice is still yours. Turn a blind eye to the divine and you will further the distance with your true self.
Even after coming on the path you are one nature in satsang and another in the world. The moment you step out of vishalakshmi mantap, you are back to your miserable state. You are back to being paymate to your tamas. The tamas which has erased every bit of life out of you.
Look at people who drink alcohol. Look at people who smoke. Their faces are dry and dead. There is no life in them. If their faces and bodies were scintillating then I would ask each of you to have a sip or light a cigarette. But the truth is otherwise. They are dead and lost like street/stray dogs, you thump your feet on floor and they whimper into the gullies/narrow bylanes. They cannot even hold their bodies together. Even if you squeeze them you will not find a single drop of life in them.
Every action, every desire, every knowledge born out of this मोह, out of this तमस will make you lifeless. It teases you with hope of happiness but it does not give you happiness.
मोह से निकला कोई भी कर्म,कोई भी आशा , कोई भी ज्ञान आपको जीवन से ले जाता है, आपको अचेत कर देता है, आपको निर्जीव कर देता है।
उन दो प्रेमियों की तरेह जिनके मत-पिता ने एक बंधन मैं बाँध दिया है। करीब आते हैं तो झगड़ते हैं , दूर रहतें हैं तो एक दुसरे के विरह मैं तड़पते हैं। यह मोह मैं बंधे हैं।
मोह सुख का लालच देता है पर सुख नहीं देता है।मोह से राक्षसी प्रवृत्तियां जागृत होतीं हैं और हमैं अपने मार्ग से अलग करती हैं। मोह से तमस को सहारा मिलता है। तमस हमारे जीवन से चेतना को निचोड़ देता है।
मोह से मुक्त होने पर हमें दैवी गुणों की अनुभूति होती है, जो हमारे जीवन मैं रस भर देतें हैं।
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The above text is inspired from commentary on chapter 9 of bhagvad geeta by HH +Sri Sri Ravi Shankar ji given on 3rd of June 2013 at Bangalore +Art of Living ashram.
The satsang was started in Yagnashala but was shifted to VM in half an hour. We were stuck in traffic jam and were almost about to reutrn but +Balakrishnan Ganesan said lets chant and sing along. Also Saraswati wished in her mond not to miss the satsang. She had another sankalp of haiving it in VM. Both her sankalp materialized.
In conversation with ashramiite in VM, he narrated a story of long time ago when Guruji used to keep shifting satsang from one place to another once in a while. He also mentioned that "यहाँ सब संकल्प से ही होता है". At end of each satsang Gurudev celebrates birthdays and anniversaries of people. Today I was forunate to take a snap from close range.
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