Skip to main content

The miracle is YOU

We look for surprise or wonder in the unusual. The things that are not common are termed miracles. If a mango tree gives mango its not a miracle but if a coconut tree gives mango then its miracle.

हम अक्सर आशर्य/अचरच/अद्भुत उस घटना को मानतें हैं जो असाधारण होती है , जो रोजमर्रा मैं नहीं होती। जैसे एक आम के पेड़ पर आम का होना या फिर नारियल के पेड़ पर नारियल का होना साधारण बात है, लेकिन एक नारियल के पेड़ पर आम होना अद्भुत घटना होती है।

परमात्मा सर्वत्र हैं, सर्वदा से हैं और समर्थ है। 
यह नहीं की कोई इंसान ५ हज़ार साल पहले हुआ था और जिसके हाथ मैं बांसुरी थी वही परमात्मा था, वह तब भी था और अब भी है।

यह नहीं है की वोह सिर्फ गुरु मैं हैं और मुझमें नहीं है. अगर वोह सर्वत्र है तो जितना मुझमें हैं उतना तुझमें भी है।फर्क इतना है की गुरु मैं दिखतें है।

यह नहीं की तुम अपनी कमजोरियों मैं खोये रहो। परमात्मा उन सारी  कमजोरियों को दूर करनें मैं सक्षम हैं। वो समर्थ भी हैन.

यह भी नहीं की शिव कैलाश-मानसरोवर मैं ही हैं. थोडा सा डेहर जाओ, थम जाओ तो परमात्मा अभी , येहीं तुझमें हैं। संत कबीर भी येही कह गए हैं की जब मैं हरी को ठूनता रहा तब तो मिले नहीं और जब मैं रुक गया तो मेरे पीछे ही मिले.

श्री कृष्ण कहतें हैं की मेरे कारण से तुम हो, मेरे होने से तुम हो. जब गर्भ मैं जीव का जन्म होता है, जब भी सृष्टी मैं सृजन होता है मुझसे ही होता है, जब जीवन ठेहेरता है तो मुझमें ही ठेहेरता  है, और जब आत्मा शरीर छोडती है तो मुझमें ही लौटकर  मिल जाती है. जब भी तुझमें कुछ परिवर्तन होता है वोह मेरे कारन होता है।

फिर अपने कर्मानुसार वोह फिर जनमती है।

यह प्रकृति भी मुझसे ही है, मेरे ही नियमों का पालन करती रहती है और मैं इसे देखते रहता हूँ एक उदासीन भाव से. जैसे की एक रेल यात्रा मैं तुम द्रश्य देखते रहते हो। द्रश्य बदलते रहतें हैं, कहीं भी मैं दखल नहीं देता हूँ और न ही कहता हूँ की यह दृश्य मुझे पसंद नहीं इसे बदल दो.

जबकि सब मुझसे है लेकिन इस प्रकृति मैं जो कर्म होतें हैं उसका असर मुझ पर नहीं पड़ता है. जिस प्रकार एक चाकू वैद के हाथ मैं भी होता है और डाकू के, दोनों पेट काटतें हैं लेकिन डॉक्टर को हत्या का पाप नहीं लगता है पर डाकू को उसके लिए जेल मिलती है.

मैं अव्यक्त हूँ, न ही मैं दूषित होता हूँ, जैसे की आकाश तत्व. प्रथ्वी मैं गंदगी हो सकती है, अग्नि दूषित हो सकती हैं, जल मैं प्रदुषण हो सकता है लेकिन आकाश निर्लिप्त है, उसे कोई छु नहीं सकता। आकाश से ही सब हैं लेकिन सब सब मैं नहीं है.


जब तुम मुर्ख व्यक्ति मैं भी ईश्वर को देखने लगोगे तब परमात्मा तुम्हारी दृष्टि से अदृस्य नहीं हो सकते।

When you can see the God in foolish around you then the God will not diminish from your vision, even for a while.
It is easy to see the God in Guru, but that same God is also in you as much it is in me. He has always been and will always be. He is very powerful, capable and a little faith in you can help him overcome all your weaknesses.

He has created everything, every being, every particle in this universe. Everything is born out of him, dwells in him and goes into him. Scientists have talked about black holes, dark matter and dark energy but they have not understood it enough. It is the powerful dark energy around sun which gives it its shape, everything spherical in the universe has got its shape from the powerful energy around them. You too have that energy within you.

Sometimes you have this vague feeling that something in you is observing all that is happening around you, in you. This witness is the God in you. It is you. You are the miracle happening every moment.
=====================
आज कल परम पूज्य श्री श्री रविशंकर जी भग्वद गीता का नौवा अध्याय पर चर्चा कर रहें है आश्रम मैं।

HH +Sri Sri Ravi Shankar ji is giving discourse on bhagvad geeta at +Art of Living international ashram at bangalore. The above is a recollection of what I have heard.


Comments

Popular posts from this blog

Success is exchange of energy

The definition of success is very elusive. It means different things in different phases of life to different people. When I was in school and college it was to pass somehow. When I was in 12th it was to get into engineering somehow. When I was in job it was to make more money anyhow. When you were in marriage it was to demand happiness and feel proud in pronouncing to yourself that every act of a frustrating job was for the sake of family and their well being. I was focusing on doing. I was focusing on achievement. So whenever I reflected back in life I always felt less. I could have been an IITian, I could not crack CAT. I could not join an organization during their early stock offer days. I could not go to US and earn in dollars. I simply missed doing too many things.  Now I feel lack of achievement. Now I feel lack of doing. Did I miss out on something while I was undergoing all this doing? Why was I nervous all this while? Why did one achievement led to other? Why...

तुम दीन नहीं हो - live ashtavakra commentary by Sri Sri Ravishankar ji

तुम वही हो. तुम सूर्य कि किरण नहीं, तुम उस किरण का विस्तार हो. तुम सूर्य हो.  जिस प्रकार सूर्ये अपनी किरणों को हर खिड़की के माध्यम से हर घर मैं भेजता है, उसी प्रकार परमात्मा अपनी पूर्णता को छोटी छोटी आत्मायों मैं भेजता है.  यह बात दूसरी है कि जब आत्मा अपने पुर मैं वास करने लगती है, अपने शरीर रुपी घर मैं रहने  लगती है तो भूल जाती है कि वह सिमित नहीं है, उसका विस्तार ही परमात्मा है.  लेकिन घर मैं घुसने के बाद आप कांच के टुकड़े मैं सूर्य का प्रतिबिम्ब देखते हो ओर अपने आप को सिर्फ एक किरण मात्र समझने लगते हो. जरा बाहर झाँक कर भी देखो, सूर्य का अनुभव तो करो. तुम्हारे आस पास भी वही सूर्य का अंश है. तुम्हारे पड़ोस मैं भी वही सूर्य कि किरण है, तुम्हारे गाँव मैं जो रिश्तेदार हैं वहां भी वही सूर्ये है. सूर्य कोई भेद भाव नहीं करता. तुम क्यूं ऊँच- नींच मैं पड़े हो.  तुम्हारे दुःख का कारण  क्या है. तुम गुरु से तो मिले हो. तुमने गुरु को साक्षात् किया है. लेकिन तुम संपूर्णतः यह निश्चय नहीं कर पाए हो कि येही सत्य है. पूरे भरोसे कि कमी होने से ही दुःख होता है....

सोहम का महत्व - live ashtavakra by Sri Sri RaviShankarji

मैं वही हूँ. न मैं त्रितिये व्यक्ति मैं हूँ, न द्वितीये व्यक्ति मैं हूँ. मैं खुद खुदा हूँ. सो हम. यह नाम तुम्हे दिया गया है. यह तुम नहीं हो. एक बार एक संत जंगल के बीच मैं अपनी झोपड़ी मैं थे. तब वहां कोई ढेर सारा खाना लेके आ गया. उन्हें हैरानी हुई कि ऐसा क्यूं हुआ. तभी वहां ३-४ लोग आये ओर उनसे कहा कि हम भूखे हैं, हमें भोजन चाह्यिये. संत  ने कहा कि मिल जाएगा. वह लोग हैरान हुए ओर कहा कि यहाँ तो कुछ नज़र नहीं आता है. तब संत ने कहा कि "सच है कि मेरे पास कुछ नहीं है, लेकिन मैं जिसके पास हूँ उनके पास सब कुछ है. "   माँ बच्चे  को जन्म देने से पहले ही उसमें दूध आ जाता है. प्रकृति का नियम है कि जहाँ प्यास होनी होती है वहां पहले से पानी व्याप्त होता है. यह दूसरी बात है कि आपको  दीखता नहीं है.   आप पूर्ण हो क्यूंकि आप पूर्ण से बने हो ओर पूर्ण मैं रहते हो ओर पूर्ण मैं जाना है. पूर्ण मैं से पूर्ण को निकालने से क्या पूर्ण अधूरा हो जाता है. आप अकेले से बोर क्यूं होते हैं, क्यूंकि आप ने अपने आप को नीरस कर दिया है. आपके पास जिस परमात्मा को होना था वह आपको कहीं ओर दीखता...