तुम एक शुद्ध आत्मा हो, अगर देखो तो तुम वही हो जो सब मैं हो ओर न देखो तो तुम किसी मैं नहीं हो. तुम जब तक अपनी शुद्धता तक नहीं पहुंचतें तब तक भय से मुक्त भी नहीं हो सकते.
अल्लाहाबाद के इंसान ने घर आकर अपने सरे परिवार जनों की हत्या कर दी. जब उसने प्राणायाम ओर ध्यान सिखा तब उसे लगा की पता नहीं तब क्या हो गया था. किस भूत ने उस पर हावी हो कर हत्या करा दी. वह अब साक्षी मान कर उस क्षण को देखता तो उसे भी अजीब लगता है.
हम सब भी अगर अपने पुर्व मैं जायें तो ऐसी कितनी घटनायें मिलेंगी जब हमने कुछ कहा हो ओर बाद मैं लगा हो की "यह मैंने कैसे कह दिया, मैंने उसका दिल ऐसे कैसे दुख दिया"
दूसरों की छोड़ो, अगर तुम्हे शेयर बाज़ार मैं नुक्सान हो जाये तो तुम तुम्हारा चेहरा कितने लटक जाता है, तुम १० , २० ओर कभी कभी तो एक महीने तक उदाश रह लेते हो ओर दुःख से भरे रहते हो, उस अर्ध से इतना लगाव क्यूं जब तुम्हे पता है की यह शरीर भी तुम्हे एक दिन छोड़ के जाने वाला है. क्या तुम हंस कर कह सकते हो की "अरे यार, नुक्सान हो गया, अब आगे देखतें हैं."
इसका मतलब यह नहीं की तुम किसी के मातम मैं जाके नाचने लगो ओर पुकारो की "मैं आनंद स्वरुप हूँ, मुझे कभी दुःख नहीं होता." परिस्थिति देख कर अपना विवेक लगाव ओर जो ज्ञान है उसे अन्दर अनुभव करते रहो. उसे चिल्लाने से तुम्हारा तो नुक्सान होगा ही तुम्हारे आस पास वालों का भी होगा.
यह बोध रहे की तुम एक विशुद्ध आत्मा हो. उस का अनुभव रहे ओर उसमें विलीन रहो.
एक बार एक यात्री जंगल से गुजर रहा था. उसका सारा ध्यान एक पगडण्डी पर था जिसमें सिर्फ दो पैर रखने की जगह थी. उसके हाथ मैं एक टिमटिमाती टोर्च थी जिसके सेल भी कमजोर हो चले थे. तब उसने सामने एक सर्प को देखा तो वह सहम गया ओर उसके पसीने छूटने लगे, उसने हनुमान जी को बुलाया ओर सबका पाठ किया लेकिन फिर भी उसका भय उसमें धंसता चला गया. तभी बिजली चमकी ओर उसने देखा की वह सर्प नहीं एक रस्सी थी जो एक बाल्टी से बंधी थी. तब एक दम से उसकी हंशी छूटी ओर उसने उस रस्सी मैं एक लात मारी ओर गुनगुनाता हुआ आगे बड़ा.
अल्लाहाबाद के इंसान ने घर आकर अपने सरे परिवार जनों की हत्या कर दी. जब उसने प्राणायाम ओर ध्यान सिखा तब उसे लगा की पता नहीं तब क्या हो गया था. किस भूत ने उस पर हावी हो कर हत्या करा दी. वह अब साक्षी मान कर उस क्षण को देखता तो उसे भी अजीब लगता है.
हम सब भी अगर अपने पुर्व मैं जायें तो ऐसी कितनी घटनायें मिलेंगी जब हमने कुछ कहा हो ओर बाद मैं लगा हो की "यह मैंने कैसे कह दिया, मैंने उसका दिल ऐसे कैसे दुख दिया"
दूसरों की छोड़ो, अगर तुम्हे शेयर बाज़ार मैं नुक्सान हो जाये तो तुम तुम्हारा चेहरा कितने लटक जाता है, तुम १० , २० ओर कभी कभी तो एक महीने तक उदाश रह लेते हो ओर दुःख से भरे रहते हो, उस अर्ध से इतना लगाव क्यूं जब तुम्हे पता है की यह शरीर भी तुम्हे एक दिन छोड़ के जाने वाला है. क्या तुम हंस कर कह सकते हो की "अरे यार, नुक्सान हो गया, अब आगे देखतें हैं."
इसका मतलब यह नहीं की तुम किसी के मातम मैं जाके नाचने लगो ओर पुकारो की "मैं आनंद स्वरुप हूँ, मुझे कभी दुःख नहीं होता." परिस्थिति देख कर अपना विवेक लगाव ओर जो ज्ञान है उसे अन्दर अनुभव करते रहो. उसे चिल्लाने से तुम्हारा तो नुक्सान होगा ही तुम्हारे आस पास वालों का भी होगा.
यह बोध रहे की तुम एक विशुद्ध आत्मा हो. उस का अनुभव रहे ओर उसमें विलीन रहो.
एक बार एक यात्री जंगल से गुजर रहा था. उसका सारा ध्यान एक पगडण्डी पर था जिसमें सिर्फ दो पैर रखने की जगह थी. उसके हाथ मैं एक टिमटिमाती टोर्च थी जिसके सेल भी कमजोर हो चले थे. तब उसने सामने एक सर्प को देखा तो वह सहम गया ओर उसके पसीने छूटने लगे, उसने हनुमान जी को बुलाया ओर सबका पाठ किया लेकिन फिर भी उसका भय उसमें धंसता चला गया. तभी बिजली चमकी ओर उसने देखा की वह सर्प नहीं एक रस्सी थी जो एक बाल्टी से बंधी थी. तब एक दम से उसकी हंशी छूटी ओर उसने उस रस्सी मैं एक लात मारी ओर गुनगुनाता हुआ आगे बड़ा.
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