तुम बस मैं चड़ते हो फिर उतरते हो. तुम किसी एक जगह से चड़ते हो ओर किसी ओर जगह पर उतरते हो. अगर तुम जहाँ चडे ओर वहीँ उतर गए तो फिर बस मैं चड़ने का क्या फायदा. तुम कोई circus के घोड़े पर तो नहीं बैठे हो, बस एक ही जगह हो, न आगे जाते हो बस एक जगह खड़े खड़े हिलते डुलते हो.
उसी प्रकार सारा ज्ञान पाने के लिए तुम हजारों बसोँ मैं चड़ो पर फिर उनसे उतरना भी सीखो. तुम ज्ञान के बंधन मैं भी नहीं बंध सकते हो. समाधी लगाना सीखो, समाधी मैं रहो, लेकिन उसे बंधन न बनायो.
तुमने कुछ पाया है, तुमने कुछ खोया है ओर अब तुम्हें अब बहुत कुछ देना भी है.
तुम निःसंग हो, निष्क्रिये हो, प्रकाशमान हो, निरंजन हो, शुद्ध हो.
तुम निरपेक्ष, निर्विकार हो, निर्भर ओर शीतल हो.
तुम्हे सिर्फ यह चिन्न मात्र चैतन्य का बोध हो, बस.
आप एक जीवन मैं कितना खाना खाते हो, कितने ट्रक भरकर खाना तुम्हारे मुख से होकर तुम्हारे अन्दर जाता है, आधे से ज्यादा तो निकल जाता है, बाकि शरीर बनाने मैं लग जाता है. जरा हिसाब लगा के देखो की अगर आप एक दिन मैं २ किलो खाना खाते हो तो एक ४० वर्ष की आयु मैं कितने टन खा चुके होगे.
जीवन मैं पांच रहस्य होते हैं, उनमें से एक होता है की तुम किसके यहाँ जन्म लेते हो. लेकिन तुम्हे कर्म करने की स्वाधीनता भी होती है जिससे तुम अपना भविष्य बदल सकते हो. अगर तुम्हारी इच्क्षा प्रबल ओर शुद्ध हो तो कोई तुम्हारे जीवन मैं आता है जो तुम सत्मार्ग पर ले जाता है. उसके साथ जाने के लिए लेकिन आपको पहले खुद पे भरोशा होना होगा ओर फिर अपने मार्ग दर्शक पर ओर उसके बताये रास्ते पर.
आपके मन मैं व्याकुलता होती अपने कस्टोँ को लेकर. आप जानना चाहते हैं की पता नहीं मैंने क्या पाप किये थे की मेरे मैं यह अवगुण हैं या फिर मैं ऐसी परिश्तिति मैं बार बार पड़ता हूँ. आप व्यक्ति, परिश्तिति, ओर अपने आप को बदलना चाहतें हैं, आप इस दुःख से भागना चाहते है ओर सोचतें हैं की अगर मैं यहाँ से वहां चला गया तो मेरा निवारण हो जाएगा.
मगर ऐसा नहीं होता है, पिक्षले जन्म की जितनी ज्यादा यादें होगीं तुम्हारी तकलीफें उतनी ज्यादा होंगी, इस जन्म की यादें ही तुम्हे बर्बाद कर चुकी हैं ओर तुम चाहते हो की ओर भी जन्मों की यादें हो, तब तुम्हारा तो कचूमर निकल जाएगा. अपने को अपनी यादों के बंधन से मुक्त करो.
यह मन की क्रिया है ओर इसे मन तक ही सिमित रहने दो. शरीर की कमजोरियों को शरीर तक रहने दो. तुम असंग हो ओर तुममें क्षमता है की तुम अपने मन की मति को शक्ति की ओर अग्रसर कर सकते हो, ओर कमजोर क्रियाओं को ध्वंश कर सकते हो. अपने व्योहार पर ध्यान दो. जैसी मति वैसी गति होगी.
एक बार मुल्ला नसीरुद्दीन के यहाँ संतान का जन्म होना था. उसकी पत्नी प्रसब पीड़ा से व्याकुल थी ओर डॉक्टर ने कहा की ऑपरेशन करना पड़ेगा, मुल्ला ने कहा एक मिनट रुको ओर वह बाजार से जाकर आया. उसने बहार खिलोअना रख दिया ओर डॉक्टर से कहा की उससे कह दो बहार खिलोअने हैं तो वह बहार आ जाएगा. वह मुल्ला की संतान है ओर इस लालच को ठुकरा नहीं सकती है.
यह देवी देवताओं के मंदिर इतने उचें उचें पहाडोँ पे क्यूं होतें हैं. इसलिए की जब आप ऊपर चड़ते हैं तो आपकी साँस एक लय मैं चलती है, वही लय आपके के लिए सुध्र्शन क्रिया होती है ओर जब आप ऊपर पहुंचतें तो विश्राम की अवस्था मैं होतें हैं ओर सुखी अनुभव करते हैं, तब आप को लगता है की इश्वर ने मेरी सुन ली है.
भव भय भंजन अलख निरंजन, नारायण, नारायण.
उसी प्रकार सारा ज्ञान पाने के लिए तुम हजारों बसोँ मैं चड़ो पर फिर उनसे उतरना भी सीखो. तुम ज्ञान के बंधन मैं भी नहीं बंध सकते हो. समाधी लगाना सीखो, समाधी मैं रहो, लेकिन उसे बंधन न बनायो.
तुमने कुछ पाया है, तुमने कुछ खोया है ओर अब तुम्हें अब बहुत कुछ देना भी है.
तुम निःसंग हो, निष्क्रिये हो, प्रकाशमान हो, निरंजन हो, शुद्ध हो.
तुम निरपेक्ष, निर्विकार हो, निर्भर ओर शीतल हो.
तुम्हे सिर्फ यह चिन्न मात्र चैतन्य का बोध हो, बस.
आप एक जीवन मैं कितना खाना खाते हो, कितने ट्रक भरकर खाना तुम्हारे मुख से होकर तुम्हारे अन्दर जाता है, आधे से ज्यादा तो निकल जाता है, बाकि शरीर बनाने मैं लग जाता है. जरा हिसाब लगा के देखो की अगर आप एक दिन मैं २ किलो खाना खाते हो तो एक ४० वर्ष की आयु मैं कितने टन खा चुके होगे.
जीवन मैं पांच रहस्य होते हैं, उनमें से एक होता है की तुम किसके यहाँ जन्म लेते हो. लेकिन तुम्हे कर्म करने की स्वाधीनता भी होती है जिससे तुम अपना भविष्य बदल सकते हो. अगर तुम्हारी इच्क्षा प्रबल ओर शुद्ध हो तो कोई तुम्हारे जीवन मैं आता है जो तुम सत्मार्ग पर ले जाता है. उसके साथ जाने के लिए लेकिन आपको पहले खुद पे भरोशा होना होगा ओर फिर अपने मार्ग दर्शक पर ओर उसके बताये रास्ते पर.
आपके मन मैं व्याकुलता होती अपने कस्टोँ को लेकर. आप जानना चाहते हैं की पता नहीं मैंने क्या पाप किये थे की मेरे मैं यह अवगुण हैं या फिर मैं ऐसी परिश्तिति मैं बार बार पड़ता हूँ. आप व्यक्ति, परिश्तिति, ओर अपने आप को बदलना चाहतें हैं, आप इस दुःख से भागना चाहते है ओर सोचतें हैं की अगर मैं यहाँ से वहां चला गया तो मेरा निवारण हो जाएगा.
मगर ऐसा नहीं होता है, पिक्षले जन्म की जितनी ज्यादा यादें होगीं तुम्हारी तकलीफें उतनी ज्यादा होंगी, इस जन्म की यादें ही तुम्हे बर्बाद कर चुकी हैं ओर तुम चाहते हो की ओर भी जन्मों की यादें हो, तब तुम्हारा तो कचूमर निकल जाएगा. अपने को अपनी यादों के बंधन से मुक्त करो.
यह मन की क्रिया है ओर इसे मन तक ही सिमित रहने दो. शरीर की कमजोरियों को शरीर तक रहने दो. तुम असंग हो ओर तुममें क्षमता है की तुम अपने मन की मति को शक्ति की ओर अग्रसर कर सकते हो, ओर कमजोर क्रियाओं को ध्वंश कर सकते हो. अपने व्योहार पर ध्यान दो. जैसी मति वैसी गति होगी.
एक बार मुल्ला नसीरुद्दीन के यहाँ संतान का जन्म होना था. उसकी पत्नी प्रसब पीड़ा से व्याकुल थी ओर डॉक्टर ने कहा की ऑपरेशन करना पड़ेगा, मुल्ला ने कहा एक मिनट रुको ओर वह बाजार से जाकर आया. उसने बहार खिलोअना रख दिया ओर डॉक्टर से कहा की उससे कह दो बहार खिलोअने हैं तो वह बहार आ जाएगा. वह मुल्ला की संतान है ओर इस लालच को ठुकरा नहीं सकती है.
यह देवी देवताओं के मंदिर इतने उचें उचें पहाडोँ पे क्यूं होतें हैं. इसलिए की जब आप ऊपर चड़ते हैं तो आपकी साँस एक लय मैं चलती है, वही लय आपके के लिए सुध्र्शन क्रिया होती है ओर जब आप ऊपर पहुंचतें तो विश्राम की अवस्था मैं होतें हैं ओर सुखी अनुभव करते हैं, तब आप को लगता है की इश्वर ने मेरी सुन ली है.
भव भय भंजन अलख निरंजन, नारायण, नारायण.
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