भगवान् आंगन मैं
बंद हैं पट
खोलो झरोखा
देखो मन
आने दो हवा को
सींचे मन
पलट के नज़रें
देखो मन
इधर उधर नहीं
भीतर अन्दर
झुकी नज़र
उठती पल
सामने बैठें हैं
अभी
इधर
भगवान् अन्दर
फिर क्यों
खोजे हैं
भटके मन
गुजर न जायें
बीतें पल
सारे के सारे
बिखरें क्षण
एक मिलन
की आस मैं
बैठें हैं लेके
भीगी पलकें
बेचैन मन
हर पल
तत्पर तत्पर तत्पर
बंद हैं पट
खोलो झरोखा
देखो मन
आने दो हवा को
सींचे मन
पलट के नज़रें
देखो मन
इधर उधर नहीं
भीतर अन्दर
झुकी नज़र
उठती पल
सामने बैठें हैं
अभी
इधर
भगवान् अन्दर
फिर क्यों
खोजे हैं
भटके मन
गुजर न जायें
बीतें पल
सारे के सारे
बिखरें क्षण
एक मिलन
की आस मैं
बैठें हैं लेके
भीगी पलकें
बेचैन मन
हर पल
तत्पर तत्पर तत्पर
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