तुम सद्गुणों की खान हो
दुर्गुण तो सिर्फ राख है
जो ऊपर से तुम्हे ढंके हैं
निरंतर साधना फूं करती है
राख उड़ाने को
फिर तुम्हे दिखाने को
वो छिपे अंगारे
जो हर दिल मैं
छिपा करते हैं
बस थोडा सा ध्यान
थोडा सा इंतज़ार
निरंतर , रोजाना
थोड़ी सी सेवा
थोडा सा सत्संग
सफा करती हैं
दुर्गुणों की राख को
बयां करती है
सद्गुणों की दास्तान
जैसे हवा तो सब जगह होती है
पर आश्रम मैं वातानुकूलित होती है
ठंडक देती है
ठहराव देती है
कम्पन घबराहट को
रोकती हैं बेचैन मन को
दिशा देती है भावों को
केन्द्रित करती है
ऊर्जा,उत्साह
देती स्फूर्ति हमें
साधना आश्रम मैं कभी कभी
साधना संसार मैं रोजाना
खुदी को खुदा तक
स्वार्थ को अपनेपन तक
मुर्दा को जिंदा तक
धीरे धीरे मिलाया करती है
साधना मुझे मुझसे मिला रही है
कुछ कुछ ही सही
पर रोजाना
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Inspired by talk by +Sri Sri Ravi Shankar ji during satsang at Art of living internation ashram at kanakpura road, bangalore on 12th January 2013.
दुर्गुण तो सिर्फ राख है
जो ऊपर से तुम्हे ढंके हैं
निरंतर साधना फूं करती है
राख उड़ाने को
फिर तुम्हे दिखाने को
वो छिपे अंगारे
जो हर दिल मैं
छिपा करते हैं
बस थोडा सा ध्यान
थोडा सा इंतज़ार
निरंतर , रोजाना
थोड़ी सी सेवा
थोडा सा सत्संग
सफा करती हैं
दुर्गुणों की राख को
बयां करती है
सद्गुणों की दास्तान
जैसे हवा तो सब जगह होती है
पर आश्रम मैं वातानुकूलित होती है
ठंडक देती है
ठहराव देती है
कम्पन घबराहट को
रोकती हैं बेचैन मन को
दिशा देती है भावों को
केन्द्रित करती है
ऊर्जा,उत्साह
देती स्फूर्ति हमें
साधना आश्रम मैं कभी कभी
साधना संसार मैं रोजाना
खुदी को खुदा तक
स्वार्थ को अपनेपन तक
मुर्दा को जिंदा तक
धीरे धीरे मिलाया करती है
साधना मुझे मुझसे मिला रही है
कुछ कुछ ही सही
पर रोजाना
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Inspired by talk by +Sri Sri Ravi Shankar ji during satsang at Art of living internation ashram at kanakpura road, bangalore on 12th January 2013.
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