Skip to main content

How does your body feel from within?

If you are feeling lighter than before. If the problems seems to getting resolved by themselves. Do you feel, sense there is a hidden scheme thats supportive and clearing the ways for you. It could be a sign that God is working hard to strengthen your soul.

But, if you feel heavy. There seems to a weight that you are carrying within, it could be a sign that विस्मृति हो गयी है और वक़्त आ गया है की स्मृति हो आत्मा की. Its a simple game of forgetfulness and remembrance of soul consciousness.
Your body consciousness leads to heaviness and soul consciousness leads to lightness. The principles are simple. How to reach out to soul is also simplified? Your purpose of coming here is also well defined. God has not pushed you out of your abode nor does he want to enjoy your pain. He has sent you with a specific mission एक विशेष लक्ष्य  and it has three purposes to fulfill

  1. Your soul is an actor. It needs a stage to perform. यह सृष्टि वो रंगमंच है जहाँ तुम्हे अपनी कलाकारी करने का न्योता मिलता है. इसे हमारे कर्मों ने दुःख रुपी बना दिया है, लेकिन अगर हम सोचें की जिसका सृष्टि कर्ता सुख का सागर है वोह दुःख का रूप कैसे बना सकती है. सोचो ?
  2. By sharing, the quantity of qualities of your soul grows. You share your qualities with God. But then he wants you to gather more, to expand. अपनी अनुभुतीओं को बाटों. आपके ही स्वरुप का विश्तार होगा. आप जो सुख के स्वरुप हो, प्रेम के स्वरुप हो, आनंद के स्वरुप हो. परमात्मा तो इन सब का सागर है. तुम उसका अंश हो. इस स्वरुप से ओर आत्माओं को अवगत कराओ. शूरुआत लेकिन आत्म स्मृति से होती है. 
  3. Show His mercy and bring back the rememberance that, He exists and He takes care. परमात्मा की भी चाहतें होतीं है, जब तुम उससे बात करते हो तो उसे भी बोलने का मौका दो. वोह सिर्फ येहि चाहता है की तुम उसको याद करो, याद रखो, उसकी स्मृति मैं ही तुम्हारी आत्मा की स्मृति, तुम्हारे परमधाम की स्मृति है, तुम्हारे स्वरुप की अनुभूति है. 
You may feel that god is not listening to you or not responding to you. But have you been considerate to his thoughts and actions. In meditation you go through following four stages
  1. Self-talk- => अपनी आत्मा से बातें करो, आत्म स्मृति करो. You need to talk to yourself first, listen to your concerns first.
  2. Talk to God => Then you talk to him. There are certain DOs and DONTs.
    • Do not ask him about materialistic goals like partner,house,car,job. DO thank him for whatever he has given you to enjoy in this materialistic world.
    • Do not seek forgiveness. He will forgive you. He can see your mistake. DO pray and take a resolve that you will not repeat your mistake. You will not be angry, hurt or harm others. 
    • Do not ask him for power and strength. You will get. Its your right from him. तुम्हारे पिता से तुम्हारे अदिकार हैं. Just thank him.
    • Do not ask him to punish others. Do tell him that they need his attention and provide them so.
  3. concentration - You listen with focus. He will communicate and transfer his energies. You get the charge.You feel his presence and power.You get the energy. You feel your depletion fulfilled.
  4. realization -  You experience his power through your expression in your environment. परमात्मा से तुम्हारा योग इस अवस्था मैं होता है.
Which stage of meditation are you? How does your body feel from within? क्यों वह तुम्हारी सुनता है?

Most of content is derived from BK Sister Sielu talk on Aastha Today between 7:10 to 7:40.

Comments

Popular posts from this blog

Success is exchange of energy

The definition of success is very elusive. It means different things in different phases of life to different people. When I was in school and college it was to pass somehow. When I was in 12th it was to get into engineering somehow. When I was in job it was to make more money anyhow. When you were in marriage it was to demand happiness and feel proud in pronouncing to yourself that every act of a frustrating job was for the sake of family and their well being. I was focusing on doing. I was focusing on achievement. So whenever I reflected back in life I always felt less. I could have been an IITian, I could not crack CAT. I could not join an organization during their early stock offer days. I could not go to US and earn in dollars. I simply missed doing too many things.  Now I feel lack of achievement. Now I feel lack of doing. Did I miss out on something while I was undergoing all this doing? Why was I nervous all this while? Why did one achievement led to other? Why...

तुम दीन नहीं हो - live ashtavakra commentary by Sri Sri Ravishankar ji

तुम वही हो. तुम सूर्य कि किरण नहीं, तुम उस किरण का विस्तार हो. तुम सूर्य हो.  जिस प्रकार सूर्ये अपनी किरणों को हर खिड़की के माध्यम से हर घर मैं भेजता है, उसी प्रकार परमात्मा अपनी पूर्णता को छोटी छोटी आत्मायों मैं भेजता है.  यह बात दूसरी है कि जब आत्मा अपने पुर मैं वास करने लगती है, अपने शरीर रुपी घर मैं रहने  लगती है तो भूल जाती है कि वह सिमित नहीं है, उसका विस्तार ही परमात्मा है.  लेकिन घर मैं घुसने के बाद आप कांच के टुकड़े मैं सूर्य का प्रतिबिम्ब देखते हो ओर अपने आप को सिर्फ एक किरण मात्र समझने लगते हो. जरा बाहर झाँक कर भी देखो, सूर्य का अनुभव तो करो. तुम्हारे आस पास भी वही सूर्य का अंश है. तुम्हारे पड़ोस मैं भी वही सूर्य कि किरण है, तुम्हारे गाँव मैं जो रिश्तेदार हैं वहां भी वही सूर्ये है. सूर्य कोई भेद भाव नहीं करता. तुम क्यूं ऊँच- नींच मैं पड़े हो.  तुम्हारे दुःख का कारण  क्या है. तुम गुरु से तो मिले हो. तुमने गुरु को साक्षात् किया है. लेकिन तुम संपूर्णतः यह निश्चय नहीं कर पाए हो कि येही सत्य है. पूरे भरोसे कि कमी होने से ही दुःख होता है....

सोहम का महत्व - live ashtavakra by Sri Sri RaviShankarji

मैं वही हूँ. न मैं त्रितिये व्यक्ति मैं हूँ, न द्वितीये व्यक्ति मैं हूँ. मैं खुद खुदा हूँ. सो हम. यह नाम तुम्हे दिया गया है. यह तुम नहीं हो. एक बार एक संत जंगल के बीच मैं अपनी झोपड़ी मैं थे. तब वहां कोई ढेर सारा खाना लेके आ गया. उन्हें हैरानी हुई कि ऐसा क्यूं हुआ. तभी वहां ३-४ लोग आये ओर उनसे कहा कि हम भूखे हैं, हमें भोजन चाह्यिये. संत  ने कहा कि मिल जाएगा. वह लोग हैरान हुए ओर कहा कि यहाँ तो कुछ नज़र नहीं आता है. तब संत ने कहा कि "सच है कि मेरे पास कुछ नहीं है, लेकिन मैं जिसके पास हूँ उनके पास सब कुछ है. "   माँ बच्चे  को जन्म देने से पहले ही उसमें दूध आ जाता है. प्रकृति का नियम है कि जहाँ प्यास होनी होती है वहां पहले से पानी व्याप्त होता है. यह दूसरी बात है कि आपको  दीखता नहीं है.   आप पूर्ण हो क्यूंकि आप पूर्ण से बने हो ओर पूर्ण मैं रहते हो ओर पूर्ण मैं जाना है. पूर्ण मैं से पूर्ण को निकालने से क्या पूर्ण अधूरा हो जाता है. आप अकेले से बोर क्यूं होते हैं, क्यूंकि आप ने अपने आप को नीरस कर दिया है. आपके पास जिस परमात्मा को होना था वह आपको कहीं ओर दीखता...