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Your perceptions create your universe

तुम्हारी दृष्टी से तुम्हारी सृष्टि बनती है,  तुम्हारी स्मृति तुम्हे विचार देती है. वह विचार तुम्हारे संकल्प बनेंगे. संकल्पों से दृष्टि कोण बनेगा. कर्म कुछ भी हो, उसके नतीजे कुछ भी निकलें, उससे तुम्हे कुछ फर्क नहीं पड़ेगा. तुम्हारी स्मृति मैं वही बात जाएगी जो निष्कर्ष तुम पहले बना चुके हो. जैसे किसी को तुम बूरा मान चुके हो और वह अच्छी  बातें करेगा तो तुम शक करोगे की आज यह अच्छी बातें क्यूं कर रहा है, इसके मन मैं कोई खोट है. तुम परेशान हो जाओगे की आखिर यह मुझ से क्या चाहता है. 
If you entertain only positive thoughts in your morning hour of meditation then you will fill your memory with matters of soul. No matter how the day proceed, you will be reminded and be in continuous touch with your pure consciousness. "Your soul is pure" is not a plain sentence. Its a powerful belief that can create a perception in your mind that you are pure as well as your neighborhood is clean. Then, when you deal with souls around and you have realized the true nature of your soul, how can you miss the beauty that they carry. Its the same pure souls around too. 
What you see through your external senses and especially eyes is what the other souls have acquired. It is not them. The possession is not the individual. The body is not them. देह को नहीं देहि को पहचानों. Their dress is not their identity. Do not degrade the beauty of soul by drifting away to notice the body, by going further and seeing only the dress on body and then going even further and believing what others think about them. How can you have opinions on souls? 
When your perception changes, your destiny will evolve on its own. You will witness a life that was beyond your comprehension. Love of the soul is not constrained, confined, restricted. It is endless, pure, flowing and full of life. You are boundless energy. Feel the bubbles and let the streams break free, flow.

Source: Kanupriya and Shivani on Awakening with brahmakumaris on Aastha channel on 7:10 PM.

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